"इहॉ कुम्हड़बतिया कोउ नाही| तरजनी देखि मारि जाहीं|" कहकर लक्ष्मण ने अपनी कौन सी विशेषताएं बताई हैं
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लक्ष्मण ने अपने वीरता साबुत करने के लिय खुद को पहाड़ बताया है कि वह कोई पहाड़ नहीं है जो परशुराम के फूंक मारने पर उड़ जाएगा और कुम्हरबतिया (सीताफल का फूल) से तुलना की है कि वे सीताफल का फूल नहीं है जा तर्जनी (फरसा)दिखने से डर जाएंगे ।
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इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने परशुराम के झूठे अभिमान को काव्य रूही के माध्यम से प्रस्तुत किया है।
Explanation:
- इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने परशुराम के झूठे अभिमान को काव्य रूही के माध्यम से प्रस्तुत किया है।
- सब भारतीय समाज में एक पुरानी कहावत है कि कुम्हड़े के छोटे कच्चे फल की और तर्जनी का संकेत करने से वह मर जाता है।
- लेकिन लक्ष्मण जी तुम्हारे के कच्चे फल जैसे कमजोर नहीं थे कि वह परशुराम की धमकी से ही डर जाते।
- लक्ष्मण ने जो कुछ भी अभिमान पूर्वक कहा था वह उनके अस्त्र-शस्त्र और फरसे को देखकर कहा था।
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