ईर्ष्या को अनोखा वरदान क्यों कहा गया है?
Answers
लेखक ने ईर्ष्या को अनोखा वरदान इसलिए कहा है, क्योंकि ईर्ष्या से व्यक्ति को उन वस्तुओं से आनंद नहीं मिलता जो उसके पास हैं, बल्कि उसे दूसरों के सुख से कष्ट होता है, दुख होता है। जिस तरह ईर्ष्या एक अनोखा वरदान है।
Explanation:
इस तरह ईर्ष्या एक अनोखा वरदान है, जो ईर्ष्या करने वाले व्यक्ति को अपने पास जो कुछ है उसके आनंद से वंचित कर दूसरों के पास जो है, वो उसके पास क्यों है? इस दुख से लाद देता है।
ईर्ष्या का कार्य जलाना है और वह सबसे पहले उसी व्यक्ति को जलाती है, जिसके हृदय में ईर्ष्या उत्पन्न होती है। ईर्ष्या के कारण ही मन में बैर व द्वेष उत्पन्न होता है और निंदा का भाव जन्म लेता है। निंदा ईश्वर की बेटी के समान है जब कोई व्यक्ति किसी से ईर्ष्या करता है तो वो उसकी निंदा करनी भी आरंभ कर देता है। ईर्ष्यालु व्यक्ति के मन में उस व्यक्ति के प्रति बैर का भाव भी जन्म लेता है, जिससे वो ईर्ष्या करता है। इस तरह वो उसका अहित करने की भी कोशिश करता है, और स्वयं भी ईर्ष्या की अग्नि में जलते हुये अपनी भी भला नही कर पाता। इस ईर्ष्या ईर्ष्यालु व्यक्ति का सर्वनाश कर देती है।
ये प्रश्न ‘रामधारी सिंह दिनकर’ द्वारा रचित निबंध “ईर्ष्या तू न गयी मेरे मन से” के पाठ से संबंधित है।
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Explanation:
अनोखा का वरदान है कि वह किसी की मदद नहीं करता वह दूसरे से निष्ठा है