ईश्वर सबकी शास्त्रों में मिलता सत्य और असत्य
Answers
Answer:
jwhwuwheye for a few more things are hunted by jihhhh are ramdev
Answer:
है। उससे यदि पूछा जाये कि आपकी जो आस्था है वह सत्य है व असत्य। वह यही कहेगा कि सत्य है। उससे यदि कहा जाये कि वह अपनी आस्था के पक्ष में कुछ तथ्य, विचार, तर्क, प्रमाण, दृष्टान्त व आप्त वचन प्रस्तुत करे तो वह मौन रहता है। इसका अर्थ है कि उस व्यक्ति ने इन बातों को परम्परागत रूप से माना तो है परन्तु उसे इस का विषय विशेष ज्ञान नहीं है। इस विषय पर जब वेद शास्त्र आदि ग्रन्थों का अध्ययन करने के बाद पक्ष व विपक्ष में विचार करते हैं तो यह तथ्य सामने आता है कि गंगा एक जल से युक्त नदी है। परमात्मा ने इसे बनाया है। यह पर्वतों पर पड़ी हुई बर्फ व वर्षा के जल से बनी है। बर्फ पिघलती रहती है तो वह जल इकट्ठा होकर एक नदी का रूप लेकर ऊंचाई से नीचे स्थानों की ओर बहता है और बंगाल में जाकर समुद्र के जल में मिल जाता है। गंगा एक नदी है और जल जड़ पदार्थ है। जड़ पदार्थ में चेतन व चैतन्यता का गुण नहीं होता। उसको सत्य व असत्य तथा सुख व दुःख की अनुभूति नहीं होती। ज्ञान केवल चेतन पदार्थ में ही रहता है। संसार मे ंचेतन पदार्थ दो ही हैं। सच्चिदानन्दस्वरूप परमात्मा और अनन्त संख्या में चेतन जीव जो सूक्ष्म, अल्पज्ञ, एकदेशी, ससीम, अनादि, नित्य, अमर, अविनाशी, जन्म-मरण धर्मा, कर्म-फल बन्घन में फंसे हुये, वेदज्ञान को प्राप्त कर एवं उसके अनुरूप आचरण कर जन्म-मरण से छूट कर मोक्ष को प्राप्त होने वाले हैं। जड़ पदार्थ में चेतन के ज्ञान व स्वतन्त्रतापूर्वक कर्म करने की सामथ्र्य आदि गुण नहीं होते। जल, गंगा, किसी अन्य नदी, कुवें व समुद्र आदि का सभी जड़ होता है। वह किसी मनुष्य की कामना को न तो जानता है, न सुन सकता है, न अनुभव कर सकता है और न ही पूरा कर सकता है। अतः गंगा नदी को परमात्मा ने जल को पीने तथा जल से खेतों की सिंचाई आदि करने के जिस प्रयोजन से बनाया है, उससे वही प्रयोजन सिद्ध करना चाहिये। यदि हम गंगा से सुख व मोक्ष आदि की कामना करेंगे, पापों को दूर करने व धोने की प्रार्थना करेंगे तो ऐसा होना सर्वथा असम्भव है। ऐसा व्यवहार हमें नहीं करना चाहिये। हमें गंगा आदि सभी नदियों को स्वच्छ रखते हुए उनसे यथायोग्य उपकार लेने चाहियें।