ईदगाह कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए
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Explanation:
ईदगाह मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित गद्य रूप में एक कहानी है। इस लेख में आप मुंशी प्रेमचंद का संक्षिप्त जीवन परिचय, पाठ का सार तथा परीक्षा में पूछे जाने वाले महत्वपूर्ण प्रश्नों का अध्ययन कर सकेंगे।
ईदगाह कहानी बाल मनोविज्ञान पर आधारित है , जिसमें एक बालक के इर्द-गिर्द पूरी घटना घूमती है। वह बालक अंत में बूढ़ी (दादी) स्त्री को भी अपने बालपन से बालक बना देता है।
इस कहानी में मुंशी प्रेमचंद ने हामिद नाम के बालक के माध्यम से बाल मनोविज्ञान का सूक्ष्मता से लेख लिखा है। यह कहानी अंत तक रोचक और कौतूहल उत्पन्न करता है।
ईद के अवसर पर गांव में ईदगाह जाने की तैयारियां हो रही है। सभी लोग कामकाज निपटा कर ईद के मेले में जाने की जल्दी में है। बच्चे सबसे ज्यादा खुश हैं , उन्हें गृहस्थी की चिंताओं से कोई मतलब नहीं। उन्हें तो यह भी नहीं मालूम कि उनके अब्बाजान ईद के लिए पैसों का इंतजाम करने चौधरी कायमअली के घर दौड़े जा रहे हैं। और यदि चौधरी पैसे उधार देने से मना कर दे तो वह ईद का त्यौहार नहीं मना पाएंगे। उनका यह ईद की खुशी के अवसर पर मुहर्रम जैसे मातम में बदल जाएगा। बच्चों को तो बस ईदगाह जाने की जल्दी है।
हामिद चार-पांच साल का दुबला पतला लड़का है। वह अपनी दादी अमीना के साथ रहता है। उसके माता-पिता गत वर्ष गुजर चुके हैं। परंतु उसे बताया गया है कि उसके अब्बाजान रुपए कमाने गए हैं। उसकी अम्मी जान अल्लाह मियां के घर से उसके लिए अच्छी-अच्छी चीजें लाने गई है। इसलिए हामिद आशावान है और प्रसन्न है।
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‘ईदगाह’ कहानी का सारांश...
‘मुंशी प्रेमचंद’ द्वारा लिखी गई “ईदगाह” कहानी एक उद्देश्यपूर्ण कहानी है। यह बाल मनोविज्ञान को गहनता से दर्शाती है। इस कहानी को पढ़कर ज्ञात होता है कि परिस्थितियां उम्र नहीं देखती और एक छोटा सा बालक भी विषम परिस्थितियों में समय से पहले परिपक्व हो जाता है।
कहानी में हामिद, जो एक मात्र 8 वर्ष का बालक है, वह एक परिपक्व व्यक्ति की भांति किसी तरह समझदारी का परिचय देता है। प्रेमचंद ने इसी बात को रोचकता से दर्शाया है। कहानी का मुख्य पात्र हामिद और उसकी दादी अमीना है। हामिद के माता-पिता इस संसार में नही हैं। वो अपनी बूढ़ी दादी के साथ रहता है। वे बहुत गरीब हैं, उसकी दादी छोटा-मोटा काम करके किसी तरह अपना और हामिद का भरण पोषण करती है। वो हामिद की सारी इच्छाएं पूरी नहीं कर पाती। ईद का त्यौहार जाता है। सब लोग मेले में घूमने जा रहे हैं। हामिद भी मेले में जाने के लिए उत्साहित है।
हामिद की दादी किसी तरह थोड़े बहुत पैसे जोड़कर तीन आने हामिद को देती है, ताकि वो मेला घूम आये। हामिद अन्य बच्चों के साथ मेला जाता है। यहां सब बच्चे अपने मां-बाप द्वारा दिए पैसों से खिलौने, मिठाई आदि खरीदते है, लेकिन अपने मन पर नियंत्रण कर ये सब नही खरीदता। वह मेले में एक जरूरी चीज लेता है। वह जरूरी चीज है रसोई घर में काम आने वाला चिमटा। हामिद देखता था कि कैसे उसकी दादी के हाथ रोटी बनाते समय जल जाते थे, क्योंकि उसके पास चिमटा नहीं था। हामिद को अपनी बूढ़ी दादी का यह कष्ट बराबर याद रहा, और उसने अपनी इच्छाओं को तिलांजलि देते हुए अपनी बूढ़ी दादी के लिए एक उपयोगी वस्तु खरीदी।
यह कहानी हामिद की मात्र 8 वर्ष की आयु में परिपक्वता को दर्शाती है। उसके अंदर की संवेदनशीलता को दर्शाती है। इसका कारण यह था कि समय और निर्धनता ने हामिद को अपनी उम्र के बच्चों से ज्यादा समझदार बना दिया था, वो समय से पहले ही परिपक्व हो चुका था, संवेदनशील बन चुका था।
हामिद के रूप बाल मनोविज्ञान और संवेदनशीलता को सार्थक रूप से प्रस्तुत करने में लेखक प्रेमचंद पूरी तरह सफल रहे हैं।