Biology, asked by balrambalrampatidar7, 6 months ago

जीवाणुओं की तीन लाभदायक क्रियाएं लिखिए कोई दिन​

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Answered by shubhipathania010
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Answered by shauryadwivedi2006
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जीवाणु एक एककोशिकीय जीव है। इसका आकार कुछ मिलिमीटर तक ही होता है। इनकी आकृति गोल या मुक्त-चक्राकार से लेकर छड़, आदि आकार की हो सकती है। ये अकेन्द्रिक, कोशिका भित्तियुक्त, एककोशकीय सरल जीव हैं जो प्रायः सर्वत्र पाये जाते हैं। ये पृथ्वी पर मिट्टी में, अम्लीय गर्म जल-धाराओं में, नाभिकीय पदार्थों में[1], जल में, भू-पपड़ी में, यहां तक की कार्बनिक पदार्थों में तथा पौधौं एवं जन्तुओं के शरीर के भीतर भी पाये जाते हैं। साधारणतः एक ग्राम मिट्टी में ४ करोड़ जीवाणु कोष तथा १ मिलीलीटर जल में १० लाख जीवाणु पाए जाते हैं। संपूर्ण पृथ्वी पर अनुमानतः लगभग ५X१०३० जीवाणु पाए जाते हैं। [2] जो संसार के बायोमास का एक बहुत बड़ा भाग है।[3] ये कई तत्वों के चक्र में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, जैसे कि वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थरीकरण में। हलाकि बहुत सारे वंश के जीवाणुओं का श्रेणी विभाजन भी नहीं हुआ है तथापि लगभग आधी प्रजातियों को किसी न किसी प्रयोगशाला में उगाया जा चुका है।[4] जीवाणुओं का अध्ययन बैक्टिरियोलोजी के अन्तर्गत किया जाता है जो कि सूक्ष्म जैविकी की ही एक शाखा है।

मानव शरीर में जितनी भी मानव कोशिकाएं है, उसकी लगभग १० गुणा संख्या तो जीवाणु कोष की ही है। इनमें से अधिकांश जीवाणु त्वचा तथा अहार-नाल में पाए जाते हैं।[5] हानिकारक जीवाणु इम्यून तंत्र के रक्षक प्रभाव के कारण शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा पाते। कुछ जीवाणु लाभदायक भी होते हैं। अनेक प्रकार के परजीवी जीवाणु कई रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे - हैजा, मियादी बुखार, निमोनिया, तपेदिक या क्षयरोग, प्लेग इत्यादि. सिर्फ क्षय रोग से प्रतिवर्ष लगभग २० लाख लोग मरते हैं, जिनमें से अधिकांश उप-सहारा क्षेत्र के होते हैं।[6] विकसित देशों में जीवाणुओं के संक्रमण का उपचार करने के लिए तथा कृषि कार्यों में प्रतिजैविक का उपयोग होता है, इसलिए जीवाणुओं में इन प्रतिजैविक दवाओं के प्रति प्रतिरोधक शक्ति विकसित होती जा रही है। औद्योगिक क्षेत्र में जीवाणुओं की किण्वन क्रिया द्वारा दही, पनीर इत्यादि वस्तुओं का निर्माण होता है। इनका उपयोग प्रतिजैविकी तथा और रसायनों के निर्माण में तथा जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होता है।[7]

पहले जीवाणुओं को पौधा माना जाता था परंतु अब उनका वर्गीकरण प्रोकैरियोट्स के रूप में होता है। दूसरे जन्तु कोशिकों तथा यूकैरियोट्स की भांति जीवाणु कोष में पूर्ण विकसित केन्द्रक का सर्वथा अभाव होता है जबकि दोहरी झिल्ली युक्त कोशिकांग यदा कदा ही पाए जाते है। पारंपरिक रूप से जीवाणु शब्द का प्रयोग सभी सजीवों के लिए होता था, परंतु यह वैज्ञानिक वर्गीकरण १९९० में हुई एक खोज के बाद बदल गया जिसमें पता चला कि प्रोकैरियोटिक सजीव वास्तव में दो भिन्न समूह के जीवों से बने हैं जिनका क्रम विकास एक ही पूर्वज से हुआ। इन दो प्रकार के जीवों को जीवाणु एवं आर्किया कहा जाता है।[8]

जीवाणु (बैक्टीरिया)एशेरिकिया कोलाए

Escherichia coliवैज्ञानिक वर्गीकरणअधिजगत:बैक्टीरिया (Bacteria)

वूज़, कैंडलर और व्हीलिस, 1990संघ

ऐसिडोबैक्टीरिया (Acidobacteria)

ऐक्टीनोबैक्टीरिया (Actinobacteria)

ऐक्वीफ़िसी (Aquificae)

आर्माटीमोनाडीटीस (Armatimonadetes)

बैक्टीरोइडिटीस (Bacteroidetes)

कैल्डीसेरिका (Caldiserica)

क्लैमिडियाए (Chlamydiae)

क्लोरोबी (Chlorobi)

क्लोरोफ़्लेक्सी (Chloroflexi)

क्रिसियोगिनीटीस (Chrysiogenetes)

सायनोबैक्टीरिया (Cyanobacteria)

Deferribacteres

डायनोकोक्कस-थर्मस (Deinococcus-Thermus)

Dictyoglomi

Elusimicrobia

Fibrobacteres

फ़र्मीक्यूटीस (Firmicutes)

Fusobacteria

Gemmatimonadetes

Lentisphaerae

नाइट्रोस्पिराए (Nitrospirae)

Planctomycetes

प्रोटियोबैक्टीरिया (Proteobacteria)

स्पाइरोकीट (Spirochaetes)

Synergistetes

Tenericutes

Thermodesulfobacteria

Thermotogae

Verrucomicrobia

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