जब माल किस्ट भुगतान पद्धति में बेचा जाता है, तब क्रेता और विक्रेता के पुस्तकों में लखंकन के क्या लेखे किए जाते हैं
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जब माल किस्त भुगतान पद्धति में बेचा जाता है तो किस्त भुगतान प्रणाली में माल का स्वामित्व संविदा पर हस्ताक्षर करने पर के क्रेता के पास तुरंत पहुंच जाता है। इस अंतर के कारण किस्त भुगतान पद्धति में जनरल प्रविष्ठियां किराया क्रय पद्धति के अंतर्गत की गई लेखांकन प्रविष्टियों से थोड़ी अलग होती हैं। प्रविष्टि से संबंधित प्रक्रिया इस प्रकार होती है...
क्रेता की पुस्तकें : लेखांकन में क्रेता पूरे नकद मूल्य से संपत्ति खाता डेबिट करता है और पूरी किस्त राशि से विक्रेता खाता क्रेडिट करता है उसके बाद पूरी किस्त राशि और पूरी नगद राशि के अंतर को ब्याज उच्चन्त खाते में डेबिट किया जाता है। ब्याज राशि ब्याज उच्चन्त खाते में डेबिट की जाती है, क्योंकि इससे बरसों की एक संख्या का ब्याज अधिक होता है। हर वर्ष चालू वर्ष के साथ ब्याज खाता डेबित और ब्याज उच्चन्त खाता क्रेडिट किया जाता है।वर्ष की समाप्ति पर ब्याज खाता लाभ हानि खाते में हस्तांतरित कर दिया जाता है। ब्याज उच्चन्त खाते का शेष चिट्ठे में संपत्ति पक्ष में दिखाया जाता है। विक्रेता को उसकी देय राशि का भुगतान करके मूल्यह्रास हेतु प्रविष्टि सामान्य तरह से की जाती है।
विक्रेता की पुस्तकें : विक्रेता को उसके द्वारा दी गई पूरी राशि से डेबिट एवं पूरी नकद राशि द्वारा विक्रय का क्रेडिट करता है और ब्याज उस खाते को कुल मूल्य एवं नकद मूल्य के अंतर से क्रेडिट करता है। पिता की तरह विक्रेता भी प्रत्येक वर्ष देय ब्याज को ब्याज खाते से ब्याज खाते में हस्तांतरित करता है ब्याज खाते को लाभ और हानि खाते में हस्तान्तरित कर बंद किया जाता है और ब्याज उच्चन्त खाते के शेष को दायित्व पक्ष में दिखाया जाता है। जब किश्त प्राप्त हो जाती है, तो विक्रेता नकद या बैंक खाते डेबिट और क्रेता के खाते को क्रेडिट करता है।
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