जब सारा भुवन सोता है तब भी --- जागता रहता है। *
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स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में। मानों झीम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥ जाग रहा यह कौन धनुर्धर, जब कि भुवन भर सोता है? भोगी कुसुमायुध योगी-सा, बना दृष्टिगत होता है
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