jaishankar prasad ka mul part ki vyakhya
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हिन्दी कथा-साहित्य के विकास के प्रथम चरण में ही प्रसाद जी ने कविताओं के साथ कथा-साहित्य के क्षेत्र में पदार्पण किया। उनकी सांस्कृतिक अभिरूचि और वैयक्तिक भावानुभूति की स्पष्ट छाप के कारण उनके द्वारा रचित कथा-साहित्य अपनी एक अलग पहचान बनाने में पूर्णतः सक्षम हुआ।
‘कंकाल’ और ‘तितली’ की रचना पर युगीन बोध का प्रभाव स्पष्ट लक्षित होता है लाचार और बेबश स्त्रियों की समस्याओं के आधार पर यथार्थ के बाल-निरूपण का जैसा चित्रण उस समय लेखक कर रहे थे प्रसाद जी उनकी पंक्ति में खड़े हुए और उन्होंने सच्चाई की आन्तरिक औरतों की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। एक तरफ से देखे तो वे व्यक्ति के अन्तर संबंधी के कथाकार है और व्यक्ति के मन की गहराइयों में प्रवेश कर उसे उट्घाटित करना चाहते हैं।
‘तितली’ का कथा-शिल्प और वस्तु-विन्यास ब्राह्म यथार्थ और तत्त्कालीन सामाजिक संदर्भों के प्रति अधिक संवेदनशील है। यही कारण है कि ‘तितली’ एक श्रेष्ठ उपन्यास बन सका है।
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हिन्दी कथा-साहित्य के विकास के प्रथम चरण में ही प्रसाद जी ने कविताओं के साथ कथा-साहित्य के क्षेत्र में पदार्पण किया। उनकी सांस्कृतिक अभिरूचि और वैयक्तिक भावानुभूति की स्पष्ट छाप के कारण उनके द्वारा रचित कथा-साहित्य अपनी एक अलग पहचान बनाने में पूर्णतः सक्षम हुआ।
‘कंकाल’ और ‘तितली’ की रचना पर युगीन बोध का प्रभाव स्पष्ट लक्षित होता है लाचार और बेबश स्त्रियों की समस्याओं के आधार पर यथार्थ के बाल-निरूपण का जैसा चित्रण उस समय लेखक कर रहे थे प्रसाद जी उनकी पंक्ति में खड़े हुए और उन्होंने सच्चाई की आन्तरिक औरतों की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। एक तरफ से देखे तो वे व्यक्ति के अन्तर संबंधी के कथाकार है और व्यक्ति के मन की गहराइयों में प्रवेश कर उसे उट्घाटित करना चाहते हैं।
‘तितली’ का कथा-शिल्प और वस्तु-विन्यास ब्राह्म यथार्थ और तत्त्कालीन सामाजिक संदर्भों के प्रति अधिक संवेदनशील है। यही कारण है कि ‘तितली’ एक श्रेष्ठ उपन्यास बन सका है।