‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग की कथावस्तु लिखिए ।
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Explanation:
जय सुभाष के द्वितीय सर्ग का सारांश (कथानक, कथावस्तु, कथासार) अपने शब्दों में लिखिए
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग की कथावस्तु निम्नलिखित है--
Explanation:
इस खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग में सुभाष के भारत के स्वतन्त्रता आंदोलन में सक्रीय भाग लेने का वर्णन है। सुभाष ने पूरे भारतवर्ष में अंग्रेज़ों द्वारा किये गए अत्याचार और अन्याय को देख कर भारतमाता को परतन्त्रता की बेड़ियों से आज़ाद कराने के लिए अपना जीवन देश के लिए समर्पित करने का निश्चय किया। महात्मा गाँधी नेतृत्व में सन 1921 ई० में असहयोग आंदोलन व्यापक रूप से चल रहा था। जिसमें छात्रों ने विद्यालयों तथा वकीलों ने न्यायालयों का बहिष्कार किया। बंगाल में इस आंदोलन का नेतृत्व देशबन्धु चितरंजनदास कर रहे थे। उन्हीं दिनों देशबन्धु जी ने एक नेशनल कॉलेज की स्थापना की, और सुभाष को उस कॉलेज में प्रधानाचार्य नियुक्त किया। सुभाष ने अपने छात्रों में देशप्रेम और स्वतन्त्रता की भावना को जागृत कर के राष्ट्र भक्त स्वयंसेवकों की एक सेना तैयार की जिससे बंगाल के घर घर में स्वतन्त्रता का सन्देश गूँज उठा। इस सेना के भय से अंग्रेजी सत्ता डोल उठी, जिसके परिणामस्वरूप अंग्रेजी सरकार ने देशबन्धु और सुभाष को जेल में बंद कर दिया। जिससे इनका साहस और शक्ति और बढ़ गया। जब ये लोग जेल से मुक्त हुए तब बंगाल बाढ़ से ग्रसित था और सुभाष तन-मन-धन से बाढ़ पीड़ितों की सहायता की। ये पंडित मोतीलाल नेहरू द्वारा स्थापित स्वराज्य पार्टी के प्रबल समर्थक थे जिसके कारण सुभाष ने दल के कई प्रतिनिधियों को कौंसिल में प्रवेश कराया। कलकत्ता महापालिका बहुमत से जीतने के बाद सुभाष को अधिशासी अधिकारी नियुक्त किया गया। इन्होंने निर्धारित वेतन से आधा वेतन लेकर महापालिका का खूब विकास किया। सरकार ने इनकी बढ़ती लोकप्रियता के कारण पहले अलीपुर फिर बरहामपुर और माण्डले जेल भेज कर यातनाएं दी, जिसकी वजह से इनका स्वास्थ्य खराब हो गया। जनता की माँग के फलस्वरूप उन्हें छोड़ दिया गया। जेल से छूटते ही इनका संघर्ष फिर से आरम्भ हो गया। सुभाष का अधिकांश जीवन जेल में ही व्यतीत हुआ।