jeevan mai haasya ka mahatva....i want hindi essay on this topic...please help me...!
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हम सब की चाहत होती है कि हमारा जीवन सफ़ल एवं समृद्ध हो। ख़ुशियों से इन्सान को अपने जीवन में संतोष प्राप्त होता है। जीवन में ख़ुशियों की प्राप्ति एक ऐसा विषय है जिसमें अधिकांश लोगों को दिलचस्पी होती है। पिछली कड़ी में हमने स्थिर ख़ुशियों की प्राप्ति के कुछ मार्गों का उल्लेख किया था। अब हम इस संदर्भ में अन्य मार्गों की चर्चा करेंगे।
ख़ुश रहने का एक तरीक़ा हंसना है, जिससे ख़ुशी को प्रकट किया जाता है। शोध से पता चलता है कि हंसना न केवल लोगों की ख़ुशी का कारण है बल्कि उन्हें स्वस्थ भी रखता है।
हंसी से शरीर का इम्यून सिस्टम या प्रतिरक्षी तंत्र मज़बूत होता है और उससे निराशा उत्पन्न करने वाले हॉर्मोन में कमी होती है तथा उनसे प्रतिरक्षी तंत्र प्रभावित नहीं होता। हंसते और खिलखिलाते चेहरे सामाजिक मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं, इसीलिए इस्लामी शिक्षाओं में सिफ़ारिश की गई है कि सामाजिक मेल मिलाप और मुलाक़ातों में मुस्कराते और हंसते रहना चाहिए, यहां तक कि अगर दिल दुखी भी हो। मुस्कराहट और हंसी, दिल को द्वेष से पाक कर देते हैं और लोगों के बीच मेल मिलाप में वृद्धि का कारण बनते हैं। जब हम हंसते हैं तो हमारे शरीर और मन को बहुत लाभ पहुंचता है। हंसी उस समय लाभदायक होती है जब सही समय पर हो और उससे दूसरों के दिलों को ठेस न पहुंचे। इस्लाम मुस्कराने और ख़ुश रहने की सिफ़ारिश के साथ ही क़हक़हा लगाकर हंसने से मना करता है। इस्लाम एक दूसरे का मज़ाक़ उड़ाकर ख़ुश होने का भी विरोध करता है।
प्रफुल्ल चेहरा, अच्छा आचरण और नर्म लहजे में बातचीत ऐसे गुण हैं कि जिन्हें हर कोई पसंद करता है और दूसरों से इसकी आशा रखता है। इन्सानों के लिए यह विशेषता ऐसी ही जैसी वनस्पतियों के लिए सूर्य का प्रकाश। जिस प्रकार सूर्य वनस्पतियों में नई जान फूंकता है, उसी तरह अच्छे बर्ताव, मीठी बातचीत और ख़ुश मिज़ाजी से इंसान स्वस्थ, ज़िंदा दिल और प्रसन्न रहता है। अल्लाह ने क़ुरान में विनम्रता और अच्छे आचरण के कारण पैग़म्बरे इस्लाम (स) की प्रशंसा की है। हज़रत अली (अ) ने कट्टरता और क्रोध को एक प्रकार का पागलनपन क़रार दिया है और अपने दोस्तों से अच्छे आचरण एवं अच्छी बोलचाल का आहवान किया है। स्वयं वे अपने साथियों से बहुत मीठे लहजे में बातचीत किया करते थे और उनके साथ हंसी मज़ाक़ करते थे तथा लोगों को आकर्षित करने के लिए इसे सर्वश्रेष्ठ तरीक़ा मानते थे। इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के अनुसार, एक मुसलमान का अपने दूसरे मुसलमान भाई के लिए हंसता और मुस्कराता चेहरा बहुत अच्छा है। वे फ़रमाते हैं कि मिनम्र रहो, अच्छा बोलो और अपने भाई से ख़ुश मिज़ाजी से मिलो।
हम सब की चाहत होती है कि हमारा जीवन सफ़ल एवं समृद्ध हो। ख़ुशियों से इन्सान को अपने जीवन में संतोष प्राप्त होता है। जीवन में ख़ुशियों की प्राप्ति एक ऐसा विषय है जिसमें अधिकांश लोगों को दिलचस्पी होती है। पिछली कड़ी में हमने स्थिर ख़ुशियों की प्राप्ति के कुछ मार्गों का उल्लेख किया था। अब हम इस संदर्भ में अन्य मार्गों की चर्चा करेंगे।
ख़ुश रहने का एक तरीक़ा हंसना है, जिससे ख़ुशी को प्रकट किया जाता है। शोध से पता चलता है कि हंसना न केवल लोगों की ख़ुशी का कारण है बल्कि उन्हें स्वस्थ भी रखता है।
हंसी से शरीर का इम्यून सिस्टम या प्रतिरक्षी तंत्र मज़बूत होता है और उससे निराशा उत्पन्न करने वाले हॉर्मोन में कमी होती है तथा उनसे प्रतिरक्षी तंत्र प्रभावित नहीं होता। हंसते और खिलखिलाते चेहरे सामाजिक मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं, इसीलिए इस्लामी शिक्षाओं में सिफ़ारिश की गई है कि सामाजिक मेल मिलाप और मुलाक़ातों में मुस्कराते और हंसते रहना चाहिए, यहां तक कि अगर दिल दुखी भी हो। मुस्कराहट और हंसी, दिल को द्वेष से पाक कर देते हैं और लोगों के बीच मेल मिलाप में वृद्धि का कारण बनते हैं। जब हम हंसते हैं तो हमारे शरीर और मन को बहुत लाभ पहुंचता है। हंसी उस समय लाभदायक होती है जब सही समय पर हो और उससे दूसरों के दिलों को ठेस न पहुंचे। इस्लाम मुस्कराने और ख़ुश रहने की सिफ़ारिश के साथ ही क़हक़हा लगाकर हंसने से मना करता है। इस्लाम एक दूसरे का मज़ाक़ उड़ाकर ख़ुश होने का भी विरोध करता है।
प्रफुल्ल चेहरा, अच्छा आचरण और नर्म लहजे में बातचीत ऐसे गुण हैं कि जिन्हें हर कोई पसंद करता है और दूसरों से इसकी आशा रखता है। इन्सानों के लिए यह विशेषता ऐसी ही जैसी वनस्पतियों के लिए सूर्य का प्रकाश। जिस प्रकार सूर्य वनस्पतियों में नई जान फूंकता है, उसी तरह अच्छे बर्ताव, मीठी बातचीत और ख़ुश मिज़ाजी से इंसान स्वस्थ, ज़िंदा दिल और प्रसन्न रहता है। अल्लाह ने क़ुरान में विनम्रता और अच्छे आचरण के कारण पैग़म्बरे इस्लाम (स) की प्रशंसा की है। हज़रत अली (अ) ने कट्टरता और क्रोध को एक प्रकार का पागलनपन क़रार दिया है और अपने दोस्तों से अच्छे आचरण एवं अच्छी बोलचाल का आहवान किया है। स्वयं वे अपने साथियों से बहुत मीठे लहजे में बातचीत किया करते थे और उनके साथ हंसी मज़ाक़ करते थे तथा लोगों को आकर्षित करने के लिए इसे सर्वश्रेष्ठ तरीक़ा मानते थे। इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के अनुसार, एक मुसलमान का अपने दूसरे मुसलमान भाई के लिए हंसता और मुस्कराता चेहरा बहुत अच्छा है। वे फ़रमाते हैं कि मिनम्र रहो, अच्छा बोलो और अपने भाई से ख़ुश मिज़ाजी से मिलो।
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