Hindi, asked by vermanobel, 6 months ago

का
26]
शिशिर, न फिर गिरि-वन में।
जितना माँगे, पतझड़ दूँगी मैं इस निज नन्दन में,
कितना कम्पन तुझे चाहिए, ले मेरे इस तन में।
सखी कह रही, पाण्डुरता का क्या अभाव आनन में ?
वीर, जमा दे नयन-नीर यदि तू मानस-भाजन में,
तो मोती-सा मैं अकिंचना रक्खू उसके मन में।
हँसी गई, रो भी न सकूँ मैं,-अपने इस जीवन में,
तो उत्कण्ठा है. देखें फिर क्या हो भाव-भुवन में!​

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Answered by ayush44538
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