कोई व्यक्ति ऊर्ध्वाधर तथा क्षैतिज धारियों की कमीज़ पहने किसी दूसरे व्यक्ति को देखता है। वह क्षैतिज धारियों की तुलना में ऊर्ध्वाधर धारियों को अधिक स्पष्ट देख पाता है। ऐसा किस दृष्टिकोण के कारण होता है? इस दृष्टिदोष का संशोधन कैसे किया जाता है?
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ये स्थिति अबिंदुकता नामक दृष्टि दोष के कारण उत्पन्न होती है। हमारा सामान्य नेत्र पूर्णता गोलीय होता है और इसके विभिन्न तलों की वक्रता सब जगह एक-समान होती है लेकिन अबिंदुकता दोष की स्थिति में हमारा आँखों का कॉर्निया पूरी तरह गोलिय नहीं रह पाता और इसके विभिन्न तलों की वक्रता एक-समान नहीं रह पाती। इस कारण व्यक्ति ऊर्ध्वाधर धारियों को तो स्पष्ट देख सकता है परंतु क्षैतिज धारियों को स्पष्ट नहीं देख पाता । अतः यह बात स्पष्ट है कि नेत्रों में ऊर्ध्वाधर तल में पर्याप्त वक्रता होती है, इस कारण ऊर्ध्वाधर रेखाएं दृष्टि पटल पर स्पष्ट पड़ती है परंतु क्षैतिज तल की वक्रता पर्याप्त ना होने के कारण ऊर्ध्वाधर रेखायें दृष्टि पटल पर स्पष्ट रूप से नही पड़ पाती और इस कारण क्षैतिज धारियों की तुलना में उर्ध्वाधर धारियों को अधिक स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इस दोष को सिलिंडरी लैंस की मदद से दूर किया जा सकता है।
दिए गए मामले में, व्यक्ति ऊर्ध्वाधर धारियों को क्षैतिज धारियों की तुलना में अधिक स्पष्ट रूप से देखने में सक्षम है। इसका मतलब यह है कि विभिन्न तल में आंख का अपवर्तन प्रणाली (कॉर्निया और आंखों का लेन्स) एक ही तरह से काम नहीं कर रहा है। इस दोष को अबिन्दुकता कहा जाता है। ये तब उत्पन्न होता है जब स्वच्छ पटल की आकृति गोलीय नहीं होती | ऊर्ध्वाधर तल में व्यक्ति की आंख में पर्याप्त वक्रता होती है। हालांकि, क्षैतिज तल में वक्रता अपर्याप्त है। इसलिए, ऊर्ध्वाधर धारियों की तेज प्रतिबिंब रेटिना पर बनती हैं, लेकिन क्षैतिज धारिया धुंधली दिखाई देती हैं। बेलनाकार लेंस का उपयोग करके इस दोष को ठीक किया जा सकता है।