English, asked by surenderdhakola, 8 months ago

किलंग के मुहले
रिवति
किलेज
युद्ध
हदय
कर दिया
उन्होंने जीवनपर्यन्त सुन करने का
प्रतिजा की,​

Answers

Answered by vishal20573
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Answer:

देश का इतिहास भारतीय सैनिकों के साहस, बलिदान और बहादुरी के किस्सों से भरा है। ऐसे कई मौके आए जब मुट्ठी भर भारतीय सैनिकों ने दुश्मनों को सिर्फ शर्मनाक हार ही नहीं दी बल्कि उनके नापाक मंसूबों को भी खाक में मिलाया। 56 साल पहले आज का दिन यानी 18 नवंबर, 1962 और लद्दाख की चुशुल घाटी में प्रवेश का रास्ता रेजांगला भारतीय सैनिकों के इस बहादुरी और बलिदान के जज्बे का गवाह बना था। भारतीय सेना की 13 कुमाऊं के 120 जवानों ने मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में चीन के 1,300 सैनिकों को मार गिराया था। आइए आज हम अपने सैनिकों की इस वीरगाथा के बारे में विस्तार से पढ़ते हैं...

युद्ध की पूरी कहानी

18 नवंबर, 1962 की सुबह। लद्दाख की चुशुल घाटी बर्फ से ढंकी हुई थी। माहौल में एक खामोशी सी थी। लेकिन यह खामोशी ज्यादातर तक नहीं रह सकी। 03.30 बजे तड़के सुबह घाटी का शांत माहौल गोलीबारी और गोलाबारी से गूंज उठा। बड़ी मात्रा में गोला-बारूद और तोप के साथ चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के करीब 5,000 से 6,000 जवानों ने लद्दाख पर हमला कर दिया था। मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व वाली 13 कुमाऊं की एक टुकड़ी चुशुल घाटी की हिफाजत पर तैनात थी। भारतीय सैन्य टुकड़ी में मात्र 120 जवान थे जबकि दूसरी तरफ दुश्मन की विशाल फौज। ऊपर से बीच में एक चोटी दीवार की तरह खड़ी थी जिसकी वजह से हमारे सैनिकों की मदद के लिए भारतीय सेना की ओर से तोप और गोले भी नहीं भेजे जा सकते थे। अब 120 जवानों को अपने दम पर चीन की विशाल फौज और हथियारों का सामना करना था। हमारे सैनिक कम थे और उनके पास साजोसामान की कमी थी लेकिन उनका हौसला बुलंद था। 13 कुमाऊं के वीर सैनिकों ने जो संभव हो सका, उतना ही सही जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी।

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