। किन्हीं तीन श्लोकों को अर्थ सहित लिखें |
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उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा: ।।
अर्थात:- उद्यम, यानि मेहनत से ही कार्य पूरे होते हैं, सिर्फ इच्छा करने से नहीं। जैसे सोये हुए शेर के मुँह में हिरण स्वयं प्रवेश नहीं करता बल्कि शेर को स्वयं ही प्रयास करना पड़ता है।
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2. वाणी रसवती यस्य,यस्य श्रमवती क्रिया ।
लक्ष्मी : दानवती यस्य,सफलं तस्य जीवितं ।।
अर्थात:- जिस मनुष्य की वाणी मीठी है, जिसका कार्य परिश्रम से युक्त है, जिसका धन दान करने में प्रयुक्त होता है, उसका जीवन सफल है।
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3. प्रदोषे दीपक : चन्द्र:,प्रभाते दीपक:रवि:।
त्रैलोक्ये दीपक:धर्म:,सुपुत्र: कुलदीपक:।।
अर्थात:- संध्या-काल मे चंद्रमा दीपक है, प्रातः काल में सूर्य दीपक है, तीनो लोकों में धर्म दीपक है और सुपुत्र कुल का दीपक है।
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नमस्ते ।
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➡ श्लोक - '' नारिकेल समाकारः दृश्यन्ते ही सुहृज्जना:
अन्ये बदरिकाड्कारा दृश्यन्ते ही मनोहरा: ''
अर्थ - सज्जन नारियल के समान होते हैं जो दिखने में कठोर होते हैं परंतु अंदर से बहुत नर्म होते हैं।
दुर्जन बेर के समान होते हैं जो बाहर से तो अच्छे होते हैं परंतु मन में छल - कपट होता है।
➡श्लोक - सत्येन धारयते पृथ्वी सत्येन तपते रवि: ।
सत्येन वाति-वायुश्च सर्वे सत्ये प्रतिप्रतिष्ठिम् ।
अर्थ - सत्य से ही पृथ्वी टिकी है सत्य से ही सूर्य तपता है। सत्य से ही वायु बहती है, सब कुछ सत्य से ही प्रतिष्ठित है।
➡ श्लोक - वन्घ: पिता महाकाशो पूज्या माता वसुंधरा । ध्येयं सदा परं बाह्य येनेदं धार्यतेखिलम् ।
अर्थ - पिता आकाश के समान महान है और माता पृथ्वी के समान वंदनीय है। बृह्म के अनुसार इन्होंने ही सब कुछ धारण किया है।
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