कोरोना का मानव जीवन पर प्रभाव अनुच्छेद लिखिए
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हमारी दुनिया एकदम बदल गई है. हज़ारों लोगों की जान चली गई. लाखों लोग बीमार पड़े हुए हैं. इन सब पर एक नए कोरोना वायरस का क़हर टूटा है. और, जो लोग इस वायरस के प्रकोप से बचे हुए हैं, उनका रहन सहन भी एकदम बदल गया है. ये वायरस दिसंबर 2019 में चीन के वुहान शहर में पहली बार सामने आया था. उसके बाद से दुनिया में सब कुछ उलट पुलट हो गया.
शुरुआत वुहान से ही हुई, जहां पूरे शहर की तालाबंदी कर दी गई. इटली में इतनी बड़ी तादाद में वायरस से लोग मरे कि वहां दूसरे विश्व युद्ध के बाद से पहली बार लोगों की आवाजाही पर इतनी सख़्त पाबंदी लगानी पड़ी. ब्रिटेन की राजधानी लंदन में पब, बार और थिएटर बंद हैं. लोग अपने घरों में बंद हैं. दुनिया भर में उड़ानें रद्द कर दी गई हैं. और बहुत से संबंध सोशल डिस्टेंसिंग के शिकार हो गए हैं.
ये सारे क़दम इसलिए उठाए गए हैं, ताकि नए कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोका जा सके और इससे लगातार बढ़ती जा रही मौतों के सिलसिले को थामा जा सके.
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इस महामारी ने दुनिया को यह सबक़ सिखा दिया है कि जिस तरह के ख़तरों से वो ख़ुद को तैयार कर रहे थे वह काफी नहीं. ऐसे में दुनिया के देशों को सिर्फ बड़े-बड़े युद्धों या विश्व युद्धों के लिए ही खुद को तैयार करना ही पर्याप्त नहीं, इस तरह के गैर-पारंपरिक ख़तरों से निपटने के लिए एक सामूहिक साझा तंत्र विकसित करने की जरूरत है. ये घटना अब उन्हें इस बात पर सोचने पर मजबूर करेगा कि वो अपने स्वास्थ्य क्षेत्र में भी बजट को बढ़ाएं. ऐसा नहीं है कि दुनिया इस तरह के ख़तरों से अनभिज्ञ थी. पहले भी स्पेनिश फ्लू या सार्स जैसी कई महामारियां दुनिया ने देखी हैं, लेकिन सियासत की राजनीति चलती रही. यह जो दौर चल रहा है उसमें हर देश अपने स्वास्थ्य बजट में जो कुछ भी झोंकना हैं वो झोकेगा, इस भंवर से निकलने के लिए. जैसे भी हो जहां से भी हो जिस तरह से हो टेस्टिंग किट मंगवाए जाएं, इसीलिए भले ही आप चीन को कितना भी कोसे मगर आप टेस्टिंग किट चीन से ही मंगाते हैं, चाहे वो अमेरिका हो या यूरोप के देश हो या भारत हो. अभी तत्काल में इससे निपटने के रास्ते अपनाने चाहिए फिर बाद में दुनिया के देशों को मिलकर के इसके लिए एक व्यापक रणनीति तैयार करनी चाहिए. उसके बाद सबको मिलकर ये सोचना होगा कि भविष्य में इस तरह के ख़तरों का स्वरूप क्या होगा.
जिस तरह से डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व के नेतृत्व का परित्याग कर दिया है, उससे यही संदेश मिलता है कि अमेरिका यह युद्ध अपने लिए इस चारदीवारी के भीतर ही लडेगा. वास्तव में यह सोच गलत है. दूसरे देशों में क्या हो रहा है उसका प्रभाव आप पर सीधे-सीधे पड़ेगा. वायरस एक तार है जो आप सबको जोड़ता है, तोड़ता नहीं है. इसलिए यदि आप इसको देशों में, सीमाओं में, समुदायों में या वर्गों में बांटकर देखते हैं तो इससे अपना ही नुक़सान होगा. जैसा कि ट्रंप प्रशासन के तहत आज अमेरिका में देखा जा रहा है. दुनिया में स्वास्थ्य बजट की तुलना में रक्षा बजट को देखें तो रक्षा बजट, स्वास्थ्य बजट की तुलना में कहीं ज्यादा ख़र्च किया जा रहा है. भारत में यह आंकड़ा 5 गुना है. इसलिए अब देशों को इस बारे में भी सोचना चाहिए कि कौन और क्या ज्य़ादा ज़रूरी है. बाकी देशों को नेशनल हेल्थ सर्विस में और अधिक इन्वेस्टमेंट करने पड़ेंगे. आज भारत के सामने जो सबसे बड़ी समस्या आ रही है वो है, वो हमारी लचर हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर की है, जो बहुत ही लचर अवस्था में है. इसे सशक्त करने की जरूरत है. इसके लिए निवेश करना पड़ेगा. भले ही इसके कोई तात्कालिक लाभ नहीं मिलते हों लेकिन इसके जो दूरगामी परिणाम है वो सबसे ज़रुरी है.