कार्य कुशलता पर जाति प्रथा का प्रभाव विषय पर समूह में चर्चा कीजिए। चर्चा के दौरान उभरने वाले बिंदुओं को लिपिबद्ध कीजिए।
Answers
जाति प्रथा के प्रभाव
- इसके कारण संकीर्णता की भावना का प्रसार होता है |
- सामाजिक, राष्ट्रीय एकता में बाधा आती है |
- इस व्यवस्था में पेशे के परिवर्तन की संभावना बहुत कम हो जाती है |
- जाति-प्रथा से उच्च श्रेणी के मनुष्यों में शारीरिक श्रम को निम्न समझने की भावना आ गई है ।
Step-by-step-explanation:
आज जाति प्रथा एक बहुचर्चित विषय बना हुआ है किन्तु वास्तव में यह अत्यंत सरल है | हमारे शास्त्रों में कर्म पर आधारित वर्ण व्यवस्था की बात कही है, जन्म आधारित नहीं | इसे भलीभाँति समझने के लिए कृपया ध्यानपूर्वक गीता के निम्नलिखित श्लोक पढ़ें |
भगवद गीता के अनुसार-
ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूद्राणां च परंतप।
कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुणैः।।18.41।।
हे परंतप ! ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों तथा शूद्रों में प्रकृति के गुणों के अनुसार उनके स्वभाव द्वारा उत्पन्न गुणों के द्वारा भेद किया जाता है |
शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च।
ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम्।।18.42।।
शांति प्रियता, आत्मसंयम, तपस्या, पवित्रता, सहिष्णुता, सत्यनिष्ठा, ज्ञान, विज्ञान तथा धार्मिकता- ये सारे स्वाभाविक गुण हैं,जिनके द्वारा ब्राह्मण कर्म करते हैं |
शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम्।
दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम्।।18.43।।
वीरता, शक्ति, संकल्प, दक्षता, युद्ध में धैर्य, उदारता तथा नेतृत्व- ये क्षत्रियों के स्वाभाविक गुण हैं |
कृषिगौरक्ष्यवाणिज्यं वैश्यकर्म स्वभावजम्।
परिचर्यात्मकं कर्म शूद्रस्यापि स्वभावजम्।।18.44।।
कृषि करना, गो-रक्षा तथा व्यापार वैश्यों के स्वाभाविक कर्म हैं और शूद्रों का कर्म श्रम तथा अन्यों की सेवा करना है |
श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वभावनियतं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम्।।18.47।।
अपने वृतिपरक कार्य को करना, चाहे वह कितना ही त्रुटिपूर्ण ढंग से क्यों न किया जाय, अन्य किसी के कार्य को स्वीकार करने और अच्छी प्रकार करने की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ है | अपने स्वभाव के अनुसार निर्दिष्ट कर्म कभी भी पाप से प्रभावित नहीं होते |
यहाँ महत्वपूर्ण बात है की जो व्यक्ति स्वभाव से शूद्र के द्वारा किए जाने वाले कर्म के प्रति आकृष्ट हो, उसे अपने आपको झूठे ही ब्राह्मण नहीं कहना चाहिए, भले ही बह ब्राह्मण कुल में क्यों न उत्पन्न हुआ हो |
उदाहरण के लिए, अर्जुन क्षत्रिय था | जब अर्जुन ने युद्ध करने के बजाय सन्यास लेने को कहा तो भगवान कृष्ण ने अर्जुन को क्षत्रिय धर्म का स्मरण कराते हुए युद्ध करना श्रेष्ठ बताया |
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घ. मनुष्य को उपवास करना चाहिये और सभी नियमों का दक्षतापूर्ण पालन करना चाहिये।
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