शारीरिक वंश - परंपरा और सामाजिक उत्तराधिकार की दृष्टि से मनुष्यों में असमानता संभावित रहने के बावजूद आंबेडकर 'समता' को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह क्यों करते हैं ? इसके पीछे उनके क्या तर्क हैं?
Answers
शारीरिक वंश - परंपरा और सामाजिक उत्तराधिकार की दृष्टि से मनुष्यों में असमानता संभावित रहने के बावजूद आंबेडकर 'समता' को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह करते हैं , इसके पीछे उन के तर्क :
वह प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता का विकास करने के लिए समान अवसर मिलने चाहिए| वह शारीरिक वंश परंपरा सामाजिक उतराधिकार के आधार पर असमान को अनुचित मानते है| उनका मानना है की सदस्यों को आरंभ से ही समान अवसर वह समान प्राप्त होने चाहिए|
स्वतंत्रता मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है। प्रत्येक मनुष्य को यह भी अधिकार है कि वह समाज में रहते हुए अपनी क्षमता का पूरा विकास करे। हमें चाहिए कि सबके साथ इस आधार पर समानता का व्यवहार किया जाए। यह समाज में रहने वाले हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है। इस तरह हम समाज का उचित निर्माण ही नहीं करते बल्कि समाज का विकास भी करते हैं। अतः आंबेडकर जी 'समता' के एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह करते हैं।