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उत्तरांचल में ट्रेकिंग करें या पर्वत शिखरों पर आरोहण के लिए जाएं, आधारस्थल के रूप में गंगोत्री आदर्श है। यही नहीं, उत्तराखंड के चार धामों में से गंगोत्री एक है। भोजपत्र के वृक्षों के जंगल भी यहीं मिलते हैं। समुद्रतल से 10 हजार फुट से अधिक ऊंचाई पर स्थित गंगोत्री आने वाले ट्रेकर्स की संख्या लगातार बढ़ी है।
इस सुंदर व पवित्र स्थान के ही चारों ओर बेबी शिवलिंग, सुदर्शन पर्वत की चोटियां, खर्चकुंड, केदार डोम, भृगुपंथ, थलय सागर, गंगोत्री पर्वत की तीनों चोटियां, रुद्रगेरा आदि जगहें मौजूद हैं। कई चोटियां 22 हजार फुट से भी अधिक ऊंची हैं। मध्य हिमालय के दुर्लभ दृश्य पास से देखने की चाह बार-बार यहां खींच ले आती है। गंगा के उद्गमस्थल गौमुख का रास्ता तो ट्रेकिंग व तीर्थयात्रा का अनूठा संगम है।
जाड़े में बर्फ से पटे रहने वाले गंगोत्री क्षेत्र के सभी मार्ग गर्मी में खुल जाते हैं। इसके बाद लोगों का आना-जाना शुरू होता है, जो अक्टूबर के अंत तक चलता रहता है। ठहरने के लिए यहां गढ़वाल मंडल विकास निगम के होटल के अलावा कई अन्य होटल तथा आश्रम हैं। गढ़वाल क्षेत्र में स्थित गंगोत्री सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा है। प्राय: सभी तरह के यात्री उत्तराखंड के प्रवेशद्वार हरिद्वार से चलकर 20 किमी दूर ऋषिकेश पहुंचते हैं। यहां से सड़क मार्ग से लोग आठ-नौ घंटे में उत्तरकाशी पहुंचते हैं। ट्रेकिंग व पर्वतारोही दल यहां रुककर जरूरी तैयारियां करते हैं। वे कई तरह के सामान किराए पर भी लेते हैं। उत्तरकाशी में कई ट्रेवल एजेंसियां हैं जो सभी आवश्यक प्रबंध करने में सक्षम हैं। पोर्टर्स (कुली), रसोइये (कुक), गाइड आदि का प्रबंध यहीं से करना उचित होता है। खच्चर, टट्टू या घोड़े गंगोत्री में मिलते हैं, परंतु इनका प्रबंध भी प्राय: उत्तरकाशी से होता है। यद्यपि इस क्षेत्र में जानवरों का प्रयोग कम ही होता है। अधिकतर कुली सामान ढोते हैं।
कुछ लोग उत्तरकाशी में भी एक-दो दिन ठहरना पसंद करते हैं। उत्तर की काशी में भव्य शिवमंदिर है, जहां शिवलिंग के दर्शन कर मन भावविह्वल हो उठता है। यहां से ठीक 99 किमी दूर गंगोत्री है। मार्ग में गंगनानी, धराली, लंका व भैरोघाटी आते हैं। दोपहर एक-दो बजे तक उत्तरकाशी पहुंचने वाले लोग बिना रुके शाम तक गंगोत्री पहुंच जाते हैं।
तीन-चार हजार फुट की ऊंचाई वाले क्षेत्र उत्तरकाशी से चलकर अनुभवी ट्रेकर्स जब हाई आल्टीट्यूड वाले क्षेत्र गंगोत्री पहुंचते हैं तो वहां एक-दो दिन अवश्य ठहरते हैं। कम ऑक्सीजन वाले वातावरण के अनुकूल हो जाने के बाद ये लोग अपने-अपने गंतव्य स्थानों की ओर बढ़ते हैं।
गंगोत्री से 20-22 किमी की दूरी पर गौमुख है। केवल इसी ट्रेक में खाने-ठहरने के इंतजाम की जरूरत नहीं होती। 20-30 रुपये में खाना और 50 रुपये में रहने की जगह मिल जाती है। अन्य सभी ट्रेकिंग रूट्स पर अपना सामान ले जाना होता है। गंगोत्री मंदिर से चलकर 9 किमी की दूरी पर चीड़वासा आता है। यहां स्थानीय लोग ही होटल चलाते हैं, जहां 20-30 लोगों के खाने-ठहरने का इंतजाम हो जाता है। सात-आठ किमी आगे भोजनबासा है। यहां गढ़वाल मंडल विकास निगम का होटल है जिसमें ठहरने और भोजन की अच्छी व्यवस्था है। कुछ उद्यमी भी यहां होटल चलाते हैं। इसके अलावा यहां एक फॉरेस्ट रेस्ट हाउस और लाल बाबा आश्रम हैं।
गौमुख दर्शन
दूसरे दिन लोग गौमुख पहुंचते हैं। गौमुख पहुंचते ही सभी लोग अनायास ही गंगा माई और भोले बाबा का जयकारा लगाने लगते हैं। 12600 फुट से अधिक ऊंचाई पर स्थित गौमुख से निकलने वाली भागीरथी की धारा में सभी लोग स्नान जरूर करते हैं। गंगोत्री ग्लेशियर में बने गुफानुमा आकार का नाम ही गौमुख है। ट्रेकिंग दल के लोग यहां स्नान व विश्राम के बाद आगे बढ़ते हैं। गौमुख से यदि बाई ओर चलें तो कुछ दूरी तय करने पर रक्तगंगा नदी मिलती है, जिसका जल अत्यंत मैला है। प्राय: तीर्थयात्री गौमुख से वापस लौट जाते हैं, क्योंकि आगे कुछ मिलता ही नहीं है। केवल ट्रेकर ही तपोवन तथा उससे भी अधिक ऊंचाई पर नंदन वन की ओर जाते हैं।