किसी साहसी महिला का वर्णन उनका चित्र लगाकर करना.
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कारगिल युद्ध के दौरान गुंजन सक्सेना (Gunjan Saxena) ने युद्ध क्षेत्र में निडर होकर चीता हेलीकॉप्टर उड़ाया. इस दौरान वह द्रास और बटालिक की ऊंची पहाड़ियों से उठाकर वापस सुरक्षित स्थान पर लेकर आईं.
नई दिल्ली: करण जोहर के प्रोडक्शन 'धर्मा प्रोडक्शन' ने अपनी नई फिल्म 'गुंजन सक्सेना- द कारगिल गर्ल' (Gunjan Saxena The Kargil Girl) का पोस्टर जारी कर दिया है. यह फिल्म आईएएफ की महिला पायलट गुंजन सक्सेना (Gunjan Saxena) पर बनी है. फिल्म में गुंजन का किरदार जान्हवी कपूर निभा रही हैं, जबकि उनके पिता की भूमिका में पंकज त्रिपाठी हैं. अब सवाल उठता है कि गुंजन सक्सेना कौन हैं (Who is Gunjan Saxena) और उन पर फिल्म बनने की वजह क्या है? गुंजन सक्सेना भारतीय वायुसेना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट रह चुकी हैं. 44 साल की गुंजन अब रिटायर हो चुकी हैं. उन्हें कारगिल गर्ल के नाम से जाना जाता है. गुंजन को उनकी वीरता, साहस और देशप्रेम के लिए शौर्य पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. गुंजन वो महिला है जिन्होंने डंके की चोट पर साबित किया कि महिलाएं न सिर्फ पायलट बन सकती है बल्कि जंग के मौदान में अपना लोहा मनवा सकती है.
कारगिल युद्ध के दौरान गुंजन सक्सेना ने युद्ध क्षेत्र में निडर होकर चीता हेलीकॉप्टर उड़ाया. इस दौरान वह द्रास और बटालिक की ऊंची पहाड़ियों से उठाकर वापस सुरक्षित स्थान पर लेकर आईं. पाकिस्तानी सैनिक लगातार रॉकेट लॉन्चर और गोलियों से हमला कर रहे थे. गुंजन के एयरक्राफ्ट पर मिसाइल भी दागी गई लेकिन निशाना चूक गया और गुंजन बाल-बाल बचीं. बिना किसी हथियार के गुंजन ने पाकिस्तानी सैनिकों का मुकाबला किया और कई जवानों को वहां से सुरक्षित निकाला. बता दें कि जब गुंजन हंसराज कॉलेज से ग्रेजुएशन कर रही थी तब उन्होंने दिल्ला का सफदरगंज फ्लाइंग क्लब ज्वाइन कर लिया था. उस समय उनके पिता और भाई दोनों ही भारतीय सेना में कार्यरत थे.
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अरुणिमा की जिंदगी की काली रात के बारे में कुछ लोग जानते होंगे। 11 अप्रैल 2011 की रात इनके साथ एक दर्दनाक हादसा हुआ। तब ये सीआईएसएफ क परीक्षा में शामिल होने के लिए पद्मावत एक्सप्रेस से लखनऊ से दिल्ली जा रही थीं। रात के करीब एक बजे बदमाश ट्रेन में चढ़े और उनका चेन छीनने की कोशिश की। अरुणिमा ने इसका विरोध किया, जिस कारण बदमाशों ने बरेली के नजदीक उन्हें ट्रेन से नीचे फेंक दिया। 7 घंटे ट्रैक पर पड़ी रहीं अरुणिमा के ऊपर से उस दौरान 49 ट्रेन गुजरती गईं। बायां पैर शरीर से अलग हो चुका था। शरीर बेजान था। आंखों के सामने चूहे पैर कुतर रहे थे, लेकिन दिमाग कह रहा था कि जीना है।
1) खेलों के कारण डेवलप हुआ ऐसा एटीट्यूड
कुछ ऐसा ही हुआ 2013 में माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई के दौरान, जब एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने से पहले उनका प्रोस्थेटिक पैर शरीर से अलग हो गया। ऑक्सीजन खत्म हो गई। लेकिन दिमाग ने फिर कहा कि तुम्हें जीना है। यही परिस्थिति हाल ही में अंटार्कटिका की चोटी पर चढ़ाई के दौरान आई, जब गिरते-पड़ते शरीर ने जवाब दे दिया, लेकिन दिमाग उनके साथ रहा। 30 साल की अरुणिमा ऐसे मुश्किल हालात में हमेशा मौत से लड़ते हुए ज़िंदगी छीन लेती हैं। इसलिए आज वे दिव्यांग होने के बावजूद दुनिया की सेवन समिट्स यानी सातों महाद्वीपों के सबसे ऊंचे शिखर पर पहुंचने का कारनामा कर चुकी हैं।
अरुणिमा सिन्हा का जन्म 10 जून 1988 को उत्तर प्रदेश के आंबेडकर नगर में हुआ था। मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाली अरुणिमा की बचपन से ही खेलों में रुचि थी। पिता सेना में लांसनायक थे। अरुणिमा जब चार साल की थीं, तब उनके पिता का देहांत हो गया था। घर की आर्थिक परिस्थितियां अच्छी नहीं थीं, लेकिन खेलने की उनकी इच्छाशक्ति में हालात बाधा नहीं बने। अरुणिमा ने स्कूल में फुटबॉल खेला, बाद में राष्ट्रीय स्तर पर वॉलीबॉल में कॉलेज का प्रतिनिधित्व किया। हॉकी भी खेली। एथलीट होने के कारण ही अरुणिमा ने हर क़दम पर लड़ना सीखा। इसी का परिणाम था कि ट्रेन में जब बदमाशों ने उनकी सोने की चैन छीनना चाही, तो अरुणिमा लड़ीं। ट्रैक पर पड़ी-पड़ी खुद से लड़ती रहीं और आज भी हर दिन और हर क्षण जूझ रही हैं।
अरुणिमा की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा कस्बे में ही हुई थी। हायर एजुकेशन के रूप में अरुणिमा ने समाजशास्त्र में मास्टर्स किया है। इन्होंने उत्तरकाशी स्थित नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग से पर्वतारोहण की ट्रेनिंग भी ली है। अरुणिमा जब 14 साल की थीं, तब उनकी बहन लक्ष्मी को कुछ बदमाशों ने चांटा मार दिया था। उस वक्त अरुणिमा ने उन बदमाशों की पिटाई कर दी थी। कई इंटरव्यूज और मोटिवेशनल स्पीच में अरुणिमा कह चुकी हैं कि खेलों के कारण उनमें यह एटीट्यूड डेवलप हो पाया। इसलिए हर इंसान को किसी न किसी खेल से जुड़े रहना चाहिए।
अरुणिमा का एक पैर प्रोस्थेटिक है, तो दूसरे में लोहे की रॉड लगी हुई है। दुर्घटना के बाद उनकी स्पाइनल कॉर्ड में भी दो फ्रैक्चर थे। लेकिन 2011 में दिल्ली एम्स में चार महीने के इलाज के तुरंत बाद अरुणिमा घर जाने के बजाय सीधा बछेंद्री पाल से मिलने चली गई थीं। बिस्तर पर पड़े-पड़े उनका मकसद साफ हो चुका था कि उन्हें जिंदगी को बोझ की तरह लेकर सिर्फ जीना नहीं है। पर्वतारोहण करने की सलाह और मार्गदर्शन उन्हें उनके भाई ने दिया था। अरुणिमा आर्टीफीशियल ब्लेड रनिंग भी करती हैं। नेशनल गेम्स (पैरा) में वे 100 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक जीत चुकी हैं। वे उन्नाव के बेथर गांव में शहीद चंद्रशेखर आजाद खेल अकादमी को स्थापित करने में मदद कर रही हैं।
सात समिट्स पर पहुंचीं अरुणिमा
चोटी का नाम ऊंचाई (फिट में)
एवरेस्ट (एशिया) 29,035
किलिमंजरो (अफ्रीका) 19,340
कोजिअस्को (आस्ट्रेलिया) 7310
माउंट विन्सन (अंटार्कटिका) 16,050
एल्ब्रूज (यूरोप) 18,510
कास्टेन पिरामिड (इंडोनेशिया) 16,024
माउंट अकंकागुआ (दक्षिण अमेरिका) 22837