कोशगतः भ्रमरः किम् अचिन्तयत् ?
Answers
Answered by
0
Answer:
कोशगतः भ्रमरः किम् अचिन्तयत् ? उत्तर कोशगत: भ्रमरः अचिन्तयत् 'रात्रि: गमिष्यति, ...
Answered by
0
कोशगत: भ्रमरः अचिन्तयत् ‘रात्रि: गमिष्यति, सुप्रभातं भविष्यति, सूर्यम् उदेष्यति, कमलं विकसिष्यति।
Explanation:
रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातं, भास्वानुदेष्यति हसिष्यति पङ्कजालि: ||
इत्थं विचिन्तयति कोशगते द्विरेफे, हा हन्त ! हन्त ! नलिनीं गज उज्जहार ||
अर्थात्
कमल की पंखुड़ियों में बंद भौंरा सोचता है कि रात बीत जाएगी | सुंदर प्रभात होगा | कमलों की पंखुड़ियाँ खुलेंगी | भौंरे के ऐसा सोचते-सोचते ही गज उस कमल को उखाड़ कर ले गया |
भाव यह है की मनुष्य भी भौंरे की भांति सुख की आशा में जीवन व्यतीत कर देता है और एक दिन मृत्यु का ग्रास बन जाता है | सुख-दुख तो दिन-रात की भांति आते जाते रहते हैं उनकी चिन्ता छोड़ कर मनुष्य को सदैव भगवान पर आश्रित होना चाहिए |
More Question:
10 lines on our national animal in Sanskrit
https://brainly.in/question/10302936
Similar questions