की
तना
कोरता
अभभहर
सीधा-
बने
आ
,
पशव साठार
उन्मुक्त शिखर वन शुद्र डोमन
निजी लताओं और पोशों को क्या करठा से
लाना चाहता
बुधा
छाडे, नितुर भए बरयाने
हम रोग, भोग कुमारी
मान एक
पवार
न भेजी, नहीं पर
आबुन
व्याय साराकाहार, कुना
नd
न खाले
उधो मन मोहन
चलले
कठाते
मार
रवत
कठ
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