Hindi, asked by keerthan2925, 10 months ago

"काव्य - सौंदर्य स्पष्ट कीजिए -
हेम कुंभ ले उषा सवेरे - भरती ढुलकाती सुख मेरे
मदिर ऊँघते रहते जब - जगकर रजनी भर तारा।

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Answered by shishir303
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हेम कुंभ ले उषा सवेरे - भरती ढुलकाती सुख मेरे

मदिर ऊँघते रहते जब - जगकर रजनी भर तारा।

काव्य सौंदर्य ⦂  

इन काव्य पंक्तियों के माध्यम से सुबह के समय दिखने वाली उषा, रात के तारे, सुबह का सूर्य आदि का मानवीकरण किया गया है और उसे ऊषा को स्त्री के रूप में चित्रित किया गया है, तो तारों को मनुष्य के रूप में चित्रित किया है।

कवि ने इन पंक्तियों में सुबह के सौंदर्य का वर्णन किया है। कवि के अनुसार भोर रूपी स्त्री अपने सूर्य रूपी सुनहरे घड़े से आकाश रूपी कुएं में से मंगल पानी भरकर आती है और लोगों के जीवन में सुबह की बूंदों के रूप में लुढ़काती है। उस समय तारे ऊँघने लगते हैं, और सूर्य के आगमन होने लगता है।

कवि के कहने का भाव यह है कि सुबह हो चुकी है, और सूरज की सुनहरी किरणें लोगों को जगा रहे हैं और तारे गायब हो चुके हैं।

कवि ने ऊषा और तारे, आकाश आदि का मानकीकरण करके मानवीय अलंकार प्रकट किया है।

इन पंक्तियों में गेयता का गुण विद्यमान है। अतः यह गाए जा सकने लायक है।

कविता में अनुप्रास अलंकार और रूपक अलंकार भी है।

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