काव्यांश
इतने ऊंचे उठो कि जितना उठा गगन है ।
देखो इस सारी दुनिया को एक दृष्टि से,
सिंचित करो धरा, समता की भाव-वृष्टि से,
ज्वालाओं से जलते जेग में,
इतने शीतल बहू कि जितना मलय पवन है।
1) दुनिया को कैसी नजर से देखना चाहिए ?
2) कवि इस धरती को किन भावों की वर्षा से सींचना चाहता है ?
3) कवि नए राग और नई भाषा को क्या देना चाहता है ?
4) कवि ने ज्वालाओं को शांत करने का क्या उपाय बताया है ?
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1)प्रस्तुत पद्य पंक्तियों में कवि कहते हैं कि हमें नए समाज निर्माण में अपनी नई सोच को जाति, धर्म, रंग-द्वेष आदि जैसे भेदभावों से ऊपर उठकर सभी को समानता की दृष्टि से देखना चाहिये
2) प्रस्तुत पंक्तियों में, सभी भेदभावों से ऊपर उठकर समाज में समानता का भाव जगाने की बात कही गई है।
3) जिस प्रकार वर्षा सभी के ऊपर समान रूप से होती है उसी प्रकार हमें भी सभी के साथ समान रूप से पेश आना चाहिए।
4) हमें नफरत की आग को समाप्त कर समाज में मलय पर्वत से आने वाली हवा की तरह शीतलता और शांति लाने का प्रयत्न करना चाहिए।
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