क्या एक जनसंचार के माध्यम के रूप में रेडियो खत्म हो रहा है? उदारीकरण के बाद भी भारत में एफ. एम. स्टेशनों के सामर्थ्य की चर्चा करें।
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Answer: रेडियो:सरकार की आवाज भारत शायद दुनिया का एकमात्र लोकतंत्र है जहां राज्य रेडियो चैनलों पर नियंत्रण रखता है। 1.34 बिलियन से अधिक लोगों वाला देश भारत दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र मे, राज्य के स्वामित्व वाले ऑल इंडिया रेडियो (AIR) को ही समाचार और वर्तमान मामलों के कार्यक्रमों को प्रसारित करने की अनुमति है। AIR, प्रसार भारती कॉर्पोरेशन का एक हिस्सा है यह आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय टेलीविजन दूरदर्शन और राष्ट्रीय रेडियो AIR का एक स्वायत्त निकाय है। एफएम रेडियो स्टेशनों को चलाने वाले निजी स्वामित्व वाले प्रसारकों के पास समाचार के अलावा संगीत और मनोरंजन सामग्री की तरह लगभग सब कुछ प्रसारित करने का लाइसेंस है। कानूनी वातावरण के भीतर आलोचना जीवंत और समृद्ध भारतीय मीडिया परिवेश को देखते हुए यह समझना मुश्किल है की समाचार प्रसारण ऑल इंडिया रेडियो और आकाशवाणी तक सीमित क्यों है। 2004 के दौरान जब दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) ने प्रसारण की ज़िम्मेदारी संभाली तब इसकी सिफारिशों में निजी एफएम स्टेशनों के लिए समाचार उत्पादन पर प्रतिबंध हटाने का सुझाव था। बाद के दिनों में इसने निजी एफएम चैनलों पर समाचार प्रसारण की अनुमति देने के प्रस्ताव को रद्द कर दिया और कहा की वह अन्य मीडिया क्षेत्रों की मौजूदा नीतियों को ध्यान मे रखते हैं, ऐसा कर के वह एआईआर प्रोग्रामिंग कोड को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते। 2008 की नवीनतम सिफारिशों में शुरुआती अनुरोध में बहुत कुछ नहीं था जबकि निजी एफएम चैनलों के लिए आकाशवाणी, दूरदर्शन (डीडी), प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई), अधिकृत टीवी न्यूज चैनल, यूनाइटेड न्यूज़ ऑफ़ इंडिया (UNI) के समाचार खंडों को प्रसारित करने की अनुमति दी गई थी। फिर भी, सरकार ने अनुपालन की जाँच करने के लिए निगरानी क्षमताओं की कथित कमी का हवाला देते हुए, मूल प्रतिबंधों के किसी भी हिस्से को नहीं हटाया।अंत में, 2011 में एक मामूली रियायत प्राप्त की गई थी क्योंकि वाणिज्यिक रेडियो स्टेशनों को अब आकाशवाणी के माध्यम से समाचार प्रसारित करने की अनुमति दी गई थी, वह मूल रूप से प्रसारित किए गए सभी कार्यक्रमों से अलग नहीं होते थे। 2013 में निजी रेडियो स्टेशनों द्वारा समाचार प्रसारण पर प्रतिबंध के विरोध मे गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ), कॉमन कॉज़ द्वारा केस लड़ा गया था। केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री, भारत सरकार को लिखे पत्र में, सरकारी नीति पर भी सवाल उठाया था और इसे भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताया था। एनजीओ को उनके पत्र का जवाब नहीं मिला इस कारण ने उन्हें सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर करने के लिए प्रेरित किया। 2017 में, भारत सरकार ने एक हलफनामा दायर कर बताया कि निजी रेडियो स्टेशनों को समाचार प्रसारित करने की अनुमति क्यों नहीं दी जा सकती है, जिसमें कहा गया है कि देश और विदेश में राष्ट्र विरोधी तत्व इन स्टेशनों का दुरुपयोग अपने एजेंडे का प्रचार करने के लिए प्रयोग कर सकते हैं जो राष्ट्रहित मे हानिकारक होगा। इसमे कहा गया कि "यह माना जाता है कि समाचार और करंट अफेयर्स, लोगों के दिमाग में सूचनाओं के हेर-फेर के माध्यम से दिमाग को ‘मैंनिपुलेट’ करने की संभावना रखते हैं इस नीति में किसी भी बदलाव के लिए एक कठोर आचार संहिता, एक उचित निगरानी तंत्र और इस तरह के प्रसारण हेतु नियम के उल्लंघन के दंडात्मक प्रावधानों का पालन करना होगा"। यह भारत के सविधान द्वार प्रद्द्त भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी के विरोधाभासी है। इस साल की शुरुआत में (2019) निजी एफएम स्टेशनों पर आकाशवाणी के अनछुए समाचार बुलेटिनों को मुफ्त में प्रसारित करने की अनुमति देने के लिए नई नियमावलियों की सूची पेश की गई। आकाशवाणी के बुलेटिनों को फिर से तैयार करने के लिए एफएम स्टेशनों के अनुरोध को ठुकरा देने के बाद, और उनके अनछुए समाचारों का उपयोग करने के लिए भुगतान करने के असफल प्रयास के बाद सरकार ने नि:शुल्क ‘ट्रायल’ की अनुमति दी है। निजी एफएम स्टेशन और एआईआर वेबसाइट पर पंजीकृत किए हुए व्यक्ति और चैनलों को समाचार बुलेटिनों को आकाशवाणी पर प्रसारित करने के 30 मिनट बाद, प्रसारित करने की अनुमति मिल सकी है। राज्य के स्वामित्व वाली मीडिया होल्डिंग, प्रसार भारती द्वारा यह बदलाव एक ऐतिहासिक घटना के रूप में प्रस्तुत किया गया, यह शिक्षा, स्वास्थ्य और जागरूकता निर्माण करने का एक महत्वपूर्ण प्लेटफार्म के रूप मे सामने आया। हालांकि, इस बदलाव ने दर्शकों की संख्या बढ़ाने मे मदद की और राज्य संचालित प्रसार भारती को मजबूत किया। एफएम स्टेशनों को अभी भी रेडियो पर अपनी खबरें प्रसारित करने की अनुमति नहीं है। यह परीक्षण आम चुनावों की अवधि के लिए पेश किया गया था और 31 मई 2019 को शुरू होगा। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि यह नया विनियमन निजी एफएम स्टेशनों के स्वतंत्र समाचार उत्पादन की मांगों को पूरा नहीं करेगा। आज बड़ी संख्या मे मीडिया घराने दृश्यमान हैं जो पहले से ही अन्य मीडिया चैनलों के माध्यम से जनता के प्रति उत्तरदायी है और समाचारों का प्रसारण करते हैं। देश भर के संवाददाताओं के एक बड़े नेटवर्क तक उनकी पहुंच है, जो अकेले ऑल इंडिया रेडियो को विभिन्न दृष्टिकोणों से सभी प्रकार के समाचारों की जानकारी देने के लिए आवश्यक प्लेटफार्म मुहैया कर सकता है। रेडियो के लिए निगरानी उपकरण की कमी से राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में उठाई गई चिंता को द एसोसिएशन ऑफ रेडियो ऑपरेटर्स फॉर इंडिया (AROI) ने संबोधित किया है, जिसमें कहा गया है कि 100+
क्या एक जनसंचार के माध्यम के रूप में रेडियो खत्म हो रहा है? उदारीकरण के बाद भी भारत में एफ. एम. स्टेशनों के सामर्थ्य की चर्चा करें।
Explanation:
उत्तर – देखा जाए तो आज के समय में जनसंचार के माध्यम के रूप में रेडियो की भूमिका भले ही पहले की भांति नहीं हैं, परंतु यह कहना भी गलत होगा की रेडियो की अस्तित्व ही पूरा मीट गया हैं। आज भी देश के 68% लोग गाँव में रहते हैं और रेडियो का आनंद लेते हैं।
रेडियो में प्रसारित खबर लोगों के लिए मार्गदर्शक की तरह हैं और “विविध भारती” कार्यक्रम लोगों को आज भी मनोरंजित करवाता हैं। उदारीकरण के बाद भले ही देश में रेडियो की भूमिका में कमी आई हो, परंतु आज भी देश के अंदर 5,40,200 रेडियो स्टेशन मौजूद हैं। इनकी सामर्थ्य को कभी भी कम दर आंका नहीं जा सकता हैं।