Hindi, asked by abcd712294, 1 year ago

Kabir chapter ki summary Kshitij

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Answered by choudharyuma29
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कबीर

साखियाँ

जिस तरह से मानसरोवर में हंस खेलते हैं और मोती चुगते हैं और वहाँ के सुख को छोड़कर कहीं नहीं जाते हैं, उसी तरह मनुष्य जीवन के मोह जाल में फंस जाता है और हमेशा इसी दुनिया में रहना चाहता है।प्रेमी को ढ़ूँढ़ने से भी पाना मुश्किल होता है। यहाँ पर प्रेमी का मतलब ईश्वर से है जिसे प्रेमी रूपी भक्त सच्चे मन से ढ़ूँढ़ने की कोशिश करता है। एक बार जब एक प्रेमी दूसरे प्रेमी से मिल जाता है तो संसार की सारी कड़वाहट अमृत में बदल जाती है। ज्ञान या ज्ञानी अगर हाथी चढ़कर भी आपके पास आता है तो उसके लिए गलीचा बिछाना चाहिए। हाथी चढ़कर आने का मतलब है आपकी पहुँच से दूर होना। हालाँकि ऐसे समय दुनिया के ज्यादातर लोग ऐसे ही बर्ताव करते हैं जैसे हाथी के बाजार में चलने से कुत्ते भूंकने लगते हैं। कुत्ते उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकते हैं और सिर्फ अपना समय बरबाद करते हैं। आप अपना समय बरबाद मत कीजिए बल्कि उससे जितना हो सके ज्ञान लेने की कोशिश कीजिए। एक विचार या दूसरे विचार या धर्म का पक्ष लेने के चक्कर में दुनिया भूल भुलैया में पड़ी रहती है। जो निष्पक्ष होकर ईश्वर की पूजा करता है वही सही ज्ञान पाता है। हिंदू मुझे राम कहते हैं और मुसलमान खुदा कहते हैं। सही मायने में वही जीता जो इन दोनों से परे मुझे ईश्वर समझता है। क्योंकि ईश्वर एक हैं और विभिन्न धर्मों की परिभाषा व्यर्थ है। काबा ही बदलकर काशी हो जाती है और राम ही रहीम होते हैं। यह वैसे ही होता है जैसे आटे को पीसने से मैदा बन जाता है, जबकि दोनों गेहूं के हि रूप हैं। इसलिए चाहे आप काशी जाएँ या काबा जाएँ, राम की पूजा करें या अल्लाह की इबादत करें हर हालत में आप भगवान के ही करीब जाएँग।सिर्फ ऊँची जाति या ऊँचे कुल में जन्म लेने से कुछ नहीं होता है। आपके कर्म अधिक मायने रखते हैं। आपके कर्मों से ही आपकी पहचान बनती है। यह वैसे ही है जैसे यदि सोने के बरतन में मदिरा रखी जाये तो इससे सोने के गुण फीके पड़ जाते हैं।

 

सबद

1.मोकों कहाँ ढ़ूँढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास में।

ना मैं देवल ना मैं मस्जिद, ना काबे कैलास में।

ना तो कौने क्रिया कर्म में, नहीं योग बैराग में।

खोजी होय तो तुरतहि मिलियो, पल भर की तालास में।

कहे कबीर सुनो भाई साधो, सब स्वांसो की स्वांस में।

लोग भगवान की तलाश में मंदिर, मस्जिद, मजार और तीर्थस्थानों पर बेकार भटकते हैं। पूजा पाठ या तंत्र मंत्र सिर्फ आडम्बर हैं। इनसे ईश्वर नहीं मिलते हैं। भगवान तो हर व्यक्ति की हर सांस में बसते हैं। जरूरत है उन्हें सही ढ़ंग से खोजने की। जो सही तरीके से ध्यान लगाकर ईश्वर को खोजता है उसे वे तुरंत मिल जाते हैं।

2.संतौं भाई आई ग्याँन की आँधी रे।

भ्रम की टाटी सबै उड़ाँनी, माया रहै न बाँधी॥

हिति चित्त की द्वै थूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।

त्रिस्नाँ छाँनि परि घर ऊपरि, कुबधि का भाँडाँ फूटा।

जोग जुगति काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी॥

आँधी पीछै जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भींनाँ।

कहै कबीर भाँन के प्रगटे उदित भया तम खीनाँ॥

इस सबद में कबीर ने ज्ञान की आँधी से होने बाले बदलावों के बारे में बताया है। कवि का कहना है कि जब ज्ञान की आँधी आती है तो भ्रम की दीवार टूट जाती है और मोहमाया के बंधन खुल जाते हैं। ज्ञान के प्रभाव से आत्मचित्त के खंभे गिर जाते हैं और मोह की शहतीर टूट जाती है। हमारे ऊपर से तृष्णा की छत हट जाती है और सभी भांडे फूट जाते हैं मतलब हमारे ऊपर पड़े आडंबरों के परदे हट जाते हैं। जब हमें ईश्वर का ज्ञान मिलता है तो मन का सारा मैल निकल जाता है। आँधी के बाद जो बारिश होती है उसके हर बूँद में हरि का प्रेम समाया होता है। जैसे सूर्य के निकलते ही अंधेरा भाग जाता है उसी तरह ज्ञान के आने से सारी दुविधा मिट जाती है।

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