Kabir or rahim ke 5 saaman arth wale dohe
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कबीर जी के दोहे :-
* गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥
* यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्त जान ।
*सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज ।
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए ।
* ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये ।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।
* बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर ।
बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर । पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।
रहीम जी के दोहे :-
* रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय |
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय”
* तरूवर फल नहिं खात है, सरवर पियत न पान।
कहि रहीम परकाज हित, संपति-सचहिं सुजान||
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