Hindi, asked by ashokk20142014, 5 hours ago

कहानी लिखिए जिसमें 15 पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग हो​

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Answered by sd926009
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Explanation:

सोम सुधाकर शशि राकेश

राजा भूपति भूप नरेश

पानी अम्बु वारि या नीर

वात हवा और अनिल समीर

दिवा दिवस दिन या वासर

पर्वत अचल शैल महिधर

विश्व जगत जग भव संसार

घर गृह आलय या आगार

अग्नि पावक आग दहन

चक्षु नेत्र नयन लोचन

विषधर सर्प या नाग भुजंग

घोड़ा घोटक अश्व तुरंग

हिरन कुरग सुरभी सारंग

गज हाथी करि नाग मतंग

वस्त्र वसन अम्बर पट चीर

तोता सुआ सुग्गा कीर

दुग्ध दूध पय अमृत क्षीर

गात कलेवर देह शरीर

सिंह केशरी शेर मृगेन्द्र

सुरपति मघवा इन्द्र महेन्द्र

अमिय सुधा अमृत मधु सोम

नभ अम्बर आकाश व्योम

बन्दर वानर मर्कट कीश

भगवन ईश्वर प्रभु जगदीश

दानव राक्षस दैत्य तमीचर

कमल कंज पंकज इन्दीवर

असि तलवार खडग करवाल

आम्र आम सहकार रसाल

पुत्र तनय सुत बेटा पूत

कोयल कोकिल पिक परभूत

बेटी पुत्री सुता आत्मजा

यमुना कालिन्दी व भानुजा

रक्त लहू शोणित अरु खून

पुष्प सुमन गुल फूल प्रसून

गिरि पर्वत या पहाड़ धराधर

वारिद बादल नीरद जलधर

बिजली चपला तड़ित दामिनी

रात निशा शर्वरी यामिनी

भौंरा मधुकर षटपद भृंग

खग पक्षी द्विज विहग विहंग

मित्र सखा सहचर या मीत

घी घृत अमृत या नवनीत

रक्तनयन हारीत कबूतर

चोर खनक मोषक रजनीचर

अम्बुधि नीरधि या रत्नाकर

सूरज भानु सूर्य दिवाकर

सर तालाब सरोवर पुष्कर

आशुतोष शिव शम्भू शंकर

*वाक्यांश के लिए ‘एक शब्द’ कोश:—-*

प्रभु में हो विश्वास आस्तिक

न माने प्रभु वही नास्तिक

कभी न पहले अभूतपूर्व

शुभ कार्य का समय मुहूर्त

आसमान में उड़ते नभचर

पानी मे रहते हैं जलचर

धरती पर रहते हैं थलचर

जल-थल दोनों रहें उभयचर

स्थिर रहे वही स्थावर

रात में घूमे वही निशाचर

कम बोले वो है मितभाषी

मीठा बोले वो मृदुभाषी

साहस जिसमें वही साहसी

रण में मरता पाये वीरगति

बेहद अच्छा होता श्रेष्ठ

जितना चाहें वही यथेष्ट

माने जो उपकार कृतज्ञ

न माने उपकार कृतघ्न

कभी न बूढ़ा होय अजर

कभी मरे न वही अमर

जिसमें रस हो वही सरस

रस न हो तो है नीरस

धीरज न हो वही अधीर

सीमा न हो वही असीम

धन न हो तो है निर्धन

सब गुण सर्वगुणसम्पन्न

साथ पढ़े वो है सहपाठी

विद्या पाता है विद्यार्थी

चिन्ता में डूबा है चिन्तित

निश्चय न हो वही अनिश्चित

कठिनाई से मिलता दुर्लभ

आसानी से मिले सुलभ

आँख के आगे है प्रत्यक्ष

दिखे नहीं जो वो अदृश्य

हिंसा करने वाला हिंसक

रक्षा में रत है अंगरक्षक

सच प्यारा वो सत्यप्रिय

सबका प्रिय वो सर्वप्रिय

सहन न हो वो असहनीय

कहा न जाये अकथनीय

आने वाला है आगामी

दिल की जाने अंतर्यामी

जिसका पता न हो अज्ञात

मात-पिता न वही अनाथ

बहुत कीमती वो बहुमूल्य

परे मूल्य से वही अमूल्य

नहीं हो संचय अपरिग्रह

सच का आग्रह सत्याग्रह

बेहद बारिश है अतिवृष्टि

कम बारिश है अल्पवृष्टि

नहीं हो बारिश अनावृष्टि

ज्ञानी स्त्री होती विदुषी

खुद की हत्या आत्महत्या

न माने आदेश अवज्ञा

भेद न पायें वही अभेद्य

कानून के विरुद्ध अवैध

दिल से हो जो वही हार्दिक

सब लोगों के लिए सार्वजनिक

जुड़ा देह से वो है दैहिक

प्रतिदिन होता वो है दैनिक

पंद्रह दिन में वही पाक्षिक

वर्ष में एक बार वार्षिक

एक बार माह में मासिक

हफ्ते में एक साप्ताहिक

जहाँ मिलें भू-गगन क्षितिज

निज नूतन रचना मौलिक

जिसमें श्रद्धा वह श्रद्धालु

दया हो जिसमें वही दयालु

अपना हित ही सोचे स्वार्थी

शरण चाहता वो शरणार्थी

नहीं सामने वही परोक्ष

जल्दी खुश वो आशुतोष

ऊँची इच्छा महत्त्वाकाँक्षा

शुभ कामना शुभाकाँक्षा

जिसको न हो डर वो निर्भय

मौत को जीते वो मृत्युंजय

सम दृष्टि रखता समदर्शी

दूर की सोचे दूरदर्शी

जीवन-भर जीवनपर्यन्त

फूलों का रस है मकरन्द

अच्छी किस्मत वो खुशकिस्मत

बुरे भाग्य वाला बदकिस्मत

मांस खाये वो मांसाहारी

सब कुछ खा ले सर्वाहारी

सिर्फ खाये फल फलाहारी

रहे दूध पर दुग्धाहारी

कम खाये वो अल्पाहारी

उसे ही कहते मिताहारी

सब्ज़ी फल ले शाकाहारी

चले शीघ्रता से द्रुतगामी

जल से घिरा स्थल है द्वीप

तीन ओर जल वो प्रायद्वीप

मार्ग हेतु भोजन पाथेय

जो पदार्थ पी सकते पेय

पशु-समान बर्ताव पाशविक

श्रम बदले धन पारिश्रमिक

लज्जा न हो वो निर्लज्ज

पर्दे के पीछे नेपथ्य

नहीं विकार हो निर्विकार

नहीं विवाद वो निर्विवाद

नहीं कोई बाधा निर्बाध

न हो निज हित वो निःस्वार्थ

जिसका पति जीवित वो सधवा

जिसका पति मर जाये विधवा

आग समंदर की बड़वानल

वन की अग्नि है दावानल

जिसकी कोई न इच्छा निस्पृह

अनुचित आग्रह बने दुराग्रह

कुछ न उगले भूमि बंजर

कृषि हो अच्छी भूमि उर्वर

चार पैर वाला चौपाया

गायों का निवास गौशाला

अच्छे कुल का व्यक्ति कुलीन

काम में डूबा वो तल्लीन

जहाँ ढलें सिक्के टकसाल

हड्डियों का ढाँचा कंकाल

गीत गाये जो वो है गायक

नायक का दुश्मन खलनायक

कई रूप धरे बहुरूपिया

दिन का कार्यक्रम है दिनचर्या

दो में निष्ठा उभयनिष्ठ

जिस पर चिह्न लगा चिह्नित

स्थान बदलने वाला जंगम

नदी जहाँ से निकले उद्गम

जैसा कोई न वो अद्वितीय

इन्द्रियाँ वश में रखे जितेंद्रिय

पति-पत्नी का जोड़ा दम्पति

कविता रचता होता है कवि

जिससे प्रेम वही प्रेमास्पद

मीठा बोले वही प्रियंवद

नीति के अनुकूल वो नैतिक

वेदों से संबंधित वैदिक

अच्छा पढ़ा-लिखा सुशिक्षित

नीचे रेखा वो रेखांकित

रखी अमानत वस्तु धरोहर

मन को हर ले वही मनोहर

मन की इच्छा मनोकामना

माँग किसी से वही याचना please make a brainliest

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