kala pradarshni par nibhand
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Explanation:
उत्पादित वस्तुओं के प्रचार-प्रसार एवं ब्रिकी हेतु लगाए गए अस्थायी बाजार या मेले को ‘प्रदर्शनी’ कहा जाता है। लेकिन प्रदर्शनी और मेले में कुछ अंतर है। प्रदर्शनी में दुकानें व्यवस्थित ढंग से सजी रहती हैं, जबकि मेले में ऐसा नहीं होता। प्रदर्शनी में प्रवेश और निकास हेतु अलग-अलग द्वार बने होते हैं, लेकिन मेले में इस तरह की व्यवस्था नहीं रहती। लोग जिधर से भी चाहें, प्रवेश कर सकते हैं और वहां से बाहर निकल सकते हैं। प्रदर्शनी में अंदर जाने के लिए प्रवेश शुल्क देना पड़ता है, जिससे मेले की तरह भीड़ नहीं लगती। मेले में प्रवेश शुल्क नहीं देना पड़ता। मेले के खुलने और बंद होने का कोई निश्चित समय नहीं होता, जबकि प्रदर्शनी के खुलने तथा बंद होने का एक निश्चित समय होता है। इस प्रकार प्रदर्शनी मेले से बिल्कुल भिन्न चीज होती है।
सभी प्रदर्शनी खुले भाग में लगाई जाती है, जहां अधिक से अधिक जगह उपलब्ध हो सके। साथ ही यह स्थान ऐसा हो कि लोग आसानी से आ-जा सकें। प्रदर्शनी हेतु स्थान प्राप्त करने के लिए उस शहर के जिलाधिकारी से अनुमति लेनी पड़ती है। राजधानी पटना का गांधी मैदान और हार्डिंग पार्क प्रदर्शनी के लिए उपयुक्त स्थान है, जहां प्रदर्शनियां लगा करती हैं। प्रदर्शनी स्थल को चारों ओर से टीन अथवा लकड़ी से घेरकर सुरक्षित कर लिया जाता है। दुकानें भी प्रायः लकड़ी और टीन से बनाई जाती हैं। इसके बाद इन दुकानों को सशुल्क दुकानदारों के बीच आवंटित कर दिया जाता है। प्रदर्शनी स्थल के बीच का भाग खुला रखा जाता है, जिसमें आगंतुक घूम-फिर सकते हैं।