Hindi, asked by sharvesh78221, 1 month ago

कवि अपिे सपिे ककन्हे और क्यों देिा चाहते हैं ?
dhwani lesson​

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Answered by chitraiclasses
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Explanation:

Write the additive inverse of the following 4/41

Answered by coolanita1986a49
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Answer:

कवि ने इस कविता के द्वारा प्रकृति के प्रति मानवीय संवेदना को दर्शाया है। इस कविता में प्रकृति का मनोहारी चित्रण है।भाषा सरल और भावपूर्ण है।तत्सम और तद्भव शब्दों का प्रयोग भी किया गया है। इस कविता में कवि का आशावादी दृष्टिकोण है।इसलिए वह जीवन की सुंदरता को पूरी तरह से जीना चाहता है यह दिखाया है।

कवि ने इस कविता के द्वारा प्रकृति के प्रति मानवीय संवेदना को दर्शाया है। कवि इस कविता के द्वारा प्रकृति के उदाहरण प्रस्तुत करते है और किस तरह प्रकृति के प्रति इंसान की अर्थात् मानव की जो भाव रहते है उन्हें दर्शाया गया है। और वह किस तरह से प्रकृति से प्रेरणा ले सकते है। जब आप कविता को पढ़ते हैं तो आपकी आँखों के सामने बहुत ही सुंदर चित्र प्रस्तुत हो जाता है। भाषा बहुत सरल है जो आपको आसानी से समझ आ जाऐगी। तत्सम और तद्धव शब्दों का प्रयोग भी किया गया है अर्थात् जो शब्द संस्कृति भाषा से जैसे के तैसे प्रस्तुत किये गए है शुद्ध हिन्दी के शब्दों का प्रयोग किया गया है। जोकि बहुत ही सरल है। कवि बहुत ही आशावादी विचारों के हैं वे जीवन के प्रति सकारत्मक सोच रखते है। और आशावादी है अर्थात् उन्हें अपने जीवन से बहुत ही सकारत्मक उम्मीद है। इसलिए वह जीवन की सुन्दरता को पूरी तरह से जीना चाहता है। यह सब इस कविता में दिखाया है।

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ध्वनि पाठ सार

कवि मानते हैं कि अभी उनका अंत नहीं होगा। अभी-अभी उनके जीवन रूपी वन में वसंत रूपी यौवन आया है।कवि प्रकृति का वर्णन करते हुए कहते हैं कि चारों ओर वृक्ष हरे-भरे हैं,पौधों पर कलियाँ खिली हैं जो अभी तक सो रही हैं।कवि कहते हैं वो सूर्य को लाकर इन अलसाई हुई कलियों को जगाएँगे और एक नया सुन्दर सवेरा लेकर आएंगे। कवि प्रकृति के द्वारा निराश-हताश लोगों के जीवन को खुशियों से भरना चाहते है। कवि बड़ी तत्परता से मानव जीवन को संवारने के लिए अपनी हर ख़ुशी एवं सुख को दान करने के लिए तैयार हैं। वे चाहते हैं हर मनुष्य का जीवन सुखमय व्यतीत हो। इसिलए वे कहते है कि उनका अंत अभी नहीं होगा जबतक वो सबके जीवन में खुशियाँ नहीं लादेते।

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ध्वनि कविता की व्याख्या

1.अभी न होगा मेरा अंत

अभी-अभी ही तो आया है

मेरे वन में मृदुल वसंत –

अभी न होगा मेरा अंत।

अंत: समाप्ति

मृदुल: कोमल

वसंत: फूल खिलने की ऋतु

कवि प्रकृति के चित्रण के द्वारा नई युवओं की पीढ़ी को समझाना चाहते है कि वह अपने आलस को छोड़े और नए उत्साह, साहस और जोश के साथ जीवन का आंनद ले। यह उद्देश्य कवि का है और वह युवा पीढ़ी को जागरित करना चाहते है। प्रकृति ने फूलों की भरमार की और उनकी सुन्दरता और खुशबु चारों तरफ फैली हुई है । अभी इस समय का अन्त नहीं होगा, ऐसा कवि का कहना है। कवी कहते है कि यह वसंत उनके जीवन में अभी-अभी तो आया है अर्थात् जीवन में उत्साह और जोश की भरपूर क्षमता है, अभी कुछ दिन ठहरेगा अभी इसका अन्त नहीं होगा। और कहते है कि अभी इस चीज़ का अंत नहीं होगा क्योंकि अभी-अभी तो जीवन में फूलों की भरमार आई है, वसंत ऋतु खिली है, जीवन में नया उत्साह नया जोश जागा है जिसकीसहायतासे युवा पीढ़ी को जागरूक करनेके संकल्प को पूरा करूँगा।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक वसंत भाग-3में संकलित कविता ‘ध्वनि’ सेहैंकविता के कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी निरालाजी हैं।इस कविता में कवि का जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण दिखाया गया है।कवि का यह मानना है कि हमें जीवन के प्रति आशावादी रहना चाहिए अपनी उम्मीद को नहीं छोड़ना चाहिए और पूरी सकारत्मक के साथ और पूरे जोश और उत्साह के साथ जीवन का आनन्द उठाना चाहिए।

व्याख्या– कविमानते हैं की उनका अंत अभी नहीं होगा, क्योंकि अभी-अभी कवि के जीवन के अमृत रूपी वन में वसंत रूपी यौवन आया है। अतः अभी उनका अंत नहीं होगा।कवि मानते हैं कि उनका अंत अभी नहीं होगा, क्योंकि वह आशावादी है जैसा कि हमने जाना और इस गुण की वजह से वह यह मानते हैं की अभी उनका अंत नहीं होगा जब तक वे अपने उद्देश्य की पूर्ती नहीं कर लेते। क्योंकि अभी कवि के जीवन में अमृत रूपी वन में वसंत रूपी यौवन आया है। अर्थात् एक नये उत्साह और जोश का आगामन हुआ है उनके जीवन में, फिर से वसंत ऋतु में चारों तरफ फूलों की भरमार और उनकी खुशबु फैली है जोकि बहुत ही सुन्दर लगती है। अतः अभी उनका अंत नहीं होगा। यही कारण है जैसा कि अभी उत्साह जोश की अधिकता है तो अभी यह कुछ दिन ठहरेगा और इसका अंत अभी नहीं होगा।

-पुष्प से तंद्रालस

लालसा खींच लूँगा मैं,

अपने नव जीवन का अमृत

सहर्ष सींच दूँगा मैं

द्वार दिखा दूँगा फिर उनको।

हैं मेरे वे जहाँ अनंत –

अभी न होगा मेरा अंत।

पुष्प-पुष्प: फूल

तंद्रालस: नींद से अलसाया हुआ

लालसा: लालच

नव: नये

अमृत: सुधा

सहर्ष: ख़ुशी के साथ

सींच: सिंचाई

द्वार: दरवाज़ा

अनंत: जिसका कभी अंत न हो

अंत: खत्म

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