(ख) किसकी कृपा पाकर पंगु पर्वत को भी लाँघ जाता है?
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(ख) किसकी कृपा पाकर पंगु पर्वत को भी लाँघ जाता है?
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, आंधर कों सब कछु दरसाई॥ बहिरो सुनै, मूक पुनि बोलै, रंक चले सिर छत्र धराई। सूरदास स्वामी करुनामय, बार-बार बंदौं तेहि पाई॥ भावार्थ :-- जिस पर श्रीहरि की कृपा हो जाती है, उसके लिए असंभव भी संभव हो जाता है।
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