Kisi parvatiya Sthal ki yatra ka varnan essay in Hindi
Answers
किसी पर्वतीय स्थल की यात्रा का वर्णन इस प्रकार है|
Explanation:
एक दिन मैंने अपने माता-पिता के साथ वैष्णो देवी जाने की योजना बनाई। हमने अपनी यात्रा बस से की और माता वैष्णो देवी की चढ़ाई हमने पैदल चलकर की। माता वैष्णो देवी की चढ़ाई के रास्ते में और मुख्य द्वार तक बहुत पहाड़ हैं।
माता वैष्णो देवी की चढ़ाई बहुत सीधी चढ़ाई है उस पर चढ़ने के लिए हमें अपने मांसपेशियों पर अधिक जोर डालना पड़ा जिससे हमारे पैरों में बहुत दर्द हो गया था । इतने ऊंचे पहाड़ों को देखकर बहुत अच्छा तो अवश्य लग ही रहा था परंतु जब हम उतर रहे थे तो नीचे खाई को देखकर हमें बहुत घबराहट हो रही थी। पहाड़ों पर चढ़ाई करते समय बहुत आनंद आ रहा था हमने पहाड़ों में कई सारी तस्वीरें भी ली।
पहाड़ों में कितनी अद्भुत बनावट देखकर हमें बहुत अच्छा महसूस हो रहा था। पहाड़ों के बीच से सूर्य उदय देखना और सूर्यास्त का नजारा एक बहुत आनंदमय नजारा था। पहाड़ इतने ऊंचे थे कि मानो वह आसमान को छू रहे हो। पहाड़ों को उनके वास्तविक रूप में देखकर मुझे बहुत अच्छा महसूस हो रहा था।
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सस्नेह नमस्ते! मुझेइसी के पुरस्कार स्वरूप पिता जी ने मेरी चिर अभिलाषित इच्छा पूरी की। हम हिमालय की गोद में बसे सुंदर शहर दार्जिलिंग गए। फ़िल्मों, पत्र-पत्रिकाओं में पर्वतीय सौंदर्य देखकर मैं अभिभूत हो उठता था। दार्जिलिंग पहुँचकर लगा कि जैसे मैं स्वर्ग में आ गया हूँ। कंचनजंघा के हिमाच्छादित शिखरों पर पड़ती सूर्य की रश्मियों ने तो जैसे सौंदर्य की गंगा ही बहा दी थी। दिल कर रहा था, बस अपलक उस सौंदर्य को निहारता ही रहूँ। चारों ओर हरियाली-ही-हरियाली थी। हम जिस स्थान पर ठहरे थे, वहाँ से दूर-दूर तक घाटी में फैले चाय के बागान दिखाई देते थे। अपनी पीठ पर टोकरी बाँधे रंग-बिरंगे वस्त्र धारण किए ग्रामीण महिलाएँ दूर से हरे-भरे पौधों के बीच रंग-बिरंगे खिले फूलों जैसी लगती थीं। इतनी तेज़ी से वे पौधों से चाय की तीन पत्तियाँ दोनों हाथों से चुनकर पीठ पर बँधी टोकरी में डालती थीं कि हम देखते ही रह जाते थे। चाय के बगीचों के बीच में ही चाय की छोटी-छोटी दुकानें भी थीं जहाँ ताज़ी हरी पत्ती वाली चाय भी मिलती थी। उस चाय का जायका अब तक मेरी जुबान पर है।
कल ही हम दार्जिलिंग से लौटे हैं। वहाँ तो पलक झपकते ही आकाश में बादल घिर आते थे और छमाछम वर्षा शुरू हो जाती थी। ठंडी-ठंडी हवा के झोंकों से सारी थकान दूर हो जाती थी। यहाँ लौटकर फिर वही गरमी, उमस और तपन।
मित्र, मैंने सोच लिया है कि मैं इसी प्रकार परिश्रम करके और अच्छे अंक प्राप्त करता रहूँगा और अगली बार पिता जी से कश्मीर ले चलने का अनुरोध करूँगा। पर्वतीय प्रदेशों के सौंदर्य में एक अजीब-सा आकर्षण है।
तुम्हारे पत्र की प्रतीक्षा रहेगी। अपने आदरणीय माँ-बापू को मेरा सादर चरण-स्पर्श कहना।
tumhara mitra