Hindi, asked by JaidKamar4421, 11 months ago

लेखक ने पाठ में संकेत किया है कि कभी-कभी बाज़ार में आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।

Answers

Answered by nikitasingh79
1

हां, हम इस विचार से सहमत है कि कभी-कभी बाज़ार में आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है।

सामान्यतः देखा जाता है कि जब मनुष्य को किसी वस्तु की अधिक आवश्यकता है तो वह बाज़ार में जाकर उस वस्तु को पाना चाहता है।  

बाज़ार में दुकानदार विक्रेता ग्राहक की मानसिकता को पढ़ लेता है, यदि उसे किसी मनुष्य की अत्याधिक आवश्यकता का आभास हो जाए तो वह उस वस्तु के दाम बढा चढ़ाकर बोलता है। ग्राहक को भी उस वस्तु की अत्याधिक आवश्यकता होती है। इसलिए वह भी उसे विक्रेता के मनचाहे मू्ल्य में उस वस्तु को खरीद लेता है। इस प्रकार कभी कभी बाज़ार में मनुष्य की आवश्यकता भी शोषण का रूप धारण कर लेती है।

आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।

 

इस पाठ से संबंधित कुछ और प्रश्न :

बाज़ार किसी का लिंग,जाति, धर्म या क्षेत्र नहीं देखता; वह देखता है सिर्फ क्रय शक्ति को। इस रूप में वह एक प्रकार से सामाजिक समता की भी रचना कर रहा है आप इससे कहां तक सहमत है

https://brainly.in/question/15411133

आप अपने तथा समाज से कुछ ऐसे प्रसंग का उल्लेख करें -

(क) जब पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत हुआ।

(ख) जब पैसे की शक्ति काम नहीं आई।https://brainly.in/question/15411140

 

Answered by manjulakujur930
0

Explanation:

uuhhhhh the perimeter of the

Similar questions