लेखक रास्ते में ठोकरें खाते हुए क्यों चले जा रहे थे?
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लेखक कहता है कि जब कभी हमारे मन को समझदारी से कोई रास्ता नहीं मिलता तो उस कारण बेचैनी हो जाती है जिसके कारण कदम तेज़ हो जाते हैं। लेखक भी उसी हालत में नाक ऊपर उठाए चल रहा था और अपने रास्ते में चलने वाले लोगों से ठोकरें खाता हुआ चला जा रहा था और सोच रहा था कि शोक करने और गम मनाने के लिए भी इस समाज में सुविधा चाहिए और... दुःखी होने का भी एक अधिकार होता है।
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