large Hindi essay on nari Shiksha ka mahatva for competition
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पुरातन काल से ऐसा कहा जाता था जहां नारी की पुजा होती है वहीं देवगण निवास करते हैं।परन्तु ऐसा जानते हुए भी नारी के साथ अन्याय और शोषण में कमी नहीं आया इसके उत्तर में कहाँ जा सकता है कि हम पूर्णतः अपनी संस्कृति और सभ्यता का त्याग कर चुके हैं।जिसके चलते हम नारी के अन्दर विद्यमान गुणों को समझने में कठिनाईओं का सामना करना पड़ रहा है।बहुत युगो तक हमारे देश की नारीया अशिक्षा और अज्ञान के अंधकार में भटक रही थी।
नारी ने तो स्वप्न देखना भी छोड़ चूंकि थी कि कभी हम शिक्षित भी हो सकती है।नारी आज से ही नहीं बल्कि प्राचीन काल से ही सम्मान की पात्र मानीं गई है परन्तु हमारे समाज वाले यह समझना छोड़ दिये कि नारी परम मित्र एवं सलाह की प्रति मूर्ति है।यह पति के लिए दासी के समान सेवा करने वाली और माता के समान जीवन देने वाली होती है।
आज के इस नये युग में नारी चाहे कितनी ही शुशिल क्यों न हो लेकिन उनमें शिक्षित होना जरूरी है।अगर आज की नारिया शिक्षित न हो तो उसका इस युग में कोई ताल मेल नहीं माना जाएगा।हमारा यह नया युग पूराने युग को बहुत पिछे छोड़ गया है।जिसके चलते नारीयों में सहनशीलता के साथ -साथ शिक्षा भी विद्यमान होनी चाहिये।आज नारियाँ पर्दा को त्याग चुकी है क्योंकि आज परिवेश में अगर नारी शिक्षित न हो तो उसका इस युग में कोई ताल मेल नहीं माना जायेगा।आज अशिक्षित नारी को महत्वहीन समझा जाता है।इसलिए समाज का हर एक व्यक्ति अपने बेटियों और बहुएं को शिक्षित बनाना अपना परम कर्तव्य समझ रहा है।
प्रचीन काल में देखा जाय तो हमारे समाज में नारियों की स्थिति पुरूषो से कहीं सुदृढ़ मानी जाती थी।एक ऐसा समय था नारी का स्थान पुरूषो से इतना ऊँचा और पूजनीय था कि पिता के नाम के स्थान पर माता के नाम से ही पहचान कराई जाती थी।
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प्ररत्तावना:
मानव जाति की प्रगति का इतिहास शिक्षा के इतिहास की नींव पर लिखा गया है । अत: यह आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति-चाहे वह पुरुष हो अथवा स्त्री-शिक्षित हो । स्त्रियों को भी पुरुषों की भांति ही शिक्षा मिलनी चाहिए, अन्यथा सही अर्थो में न तो शांति हो सकती है और न प्रगति ही ।
स्त्री और पुरुष परिवार रूपी गाड़ी में जुते दो घोडों के समान होते हैं । यदि गाड़ी में जुता एक घोड़ा बड़ा सधा हुआ और प्रशिक्षित हो तथा दूसरा जंगल से पकड़कर बिना प्रशिक्षण के लिए जोत दिया जाये, तो ऐसी गाड़ी में सवार व्यक्तियों का जीवन भगवान के भरोसे पर ही रहेगा, क्योंकि वह कहीं भी टकरा कर नष्ट हो सकती है । परिवार की गाड़ी ऐसे बेमेल जोडों द्वारा ठीक से शांतिएपूर्वक अधिक समय तक नहीं चल सकती ।
स्त्री शिक्षा की आवश्यकता:
नेपोलियन से एक बार पूछा गया कि फ्रांस की प्रगति की सबसे बड़ी समस्या क्या है ? उसने उत्तर दिया, “मातृभूमि की प्रगति शिक्षित और समझदार माताओं के बिना असभव है ।” किसी देश की स्त्रियाँ यदि शिक्षित न हों, तो उस देश की लगभग आधी आबादी अज्ञान रह जायेगी ।
परिणाम यह होगा कि ऐसा देश ससार के अन्य देशो की भाँति प्रगति और उन्नति नहीं कर सकेगा । यह ठीक ही कहा गया है कि एक पुरुष को शिक्षा देने से वह अकेला शिक्षित होता है लेकिन स्त्री की शिक्षा से समूचा परिवार अज्ञान के अधेरे से निकल कर शिक्षित हो सकता है ।
मतभेद:
भारत में एक बड़ा मतभेद यह है कि स्त्रियों को उच्च शिक्षा प्रदान की जाये अथवा नहीं । रूढिवादी लोग यह तो मानते हैं कि रित्रयों को शिक्षा दी जाये, लेकिन वे उनकी उच्च शिक्षा का विरोध करते हैं । उनका यह विचार ठीक नहीं है । यदि कोई स्त्री मानसिक रूप से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के योग्य है, तो ऐसा कोई कारण समझ में नहीं आता कि उसे अपने मानसिक विकास का समुचित अवसर न दिया जाये ।
इसके विपरीत भारत में उदार व्यक्तियों का एक ऐसा बड़ा वर्ग भी है, जो स्त्रियों की उच्च शिक्षा का हिमायती है । ऐसी को जो उच्च शिक्षा प्राप्त करने को उत्सुक हैं, केवल प्रारभिक शिक्षा के अवसर प्रदान करने का सीधा अर्थ उनकी अवज्ञा करके समाज में उन्हें नीचा स्थान देना है ।
स्त्री के कर्त्तव्य:
हर स्त्री को अपने जीवन में तीन अलग-अलग ढंग की भूमिकायें निभानी पड़ती हैं । इन तीनो भूमिका में उनके भी कर्त्तव्य भिन्न-भिन्न होते हैं । यदि वह अपनी तीनों भूमिकायें सही ढंग से निभा लेती है, तभी उसे श्रेष्ठ महिला कहा जा सकता है । केवल अच्छी शिक्षा के द्वारा ही उसे यह तीनों कर्त्तव्य सही ढंग से निभाने की प्रेरणा मिल सकती है ।
स्त्री की पहली भूमिका पुत्री के रूप में होती है, दूसरी भूमिका पत्नी के रूप में तथा तीसरी और अतिम भूमिका माँ के रूप में । शिक्षा के द्वारा ही उसे इन तीनों भूमिका के सही कर्त्तव्यों का ज्ञान प्राप्त हो सकता हैं । एक शिक्षित स्त्री ही अच्छी लड़की, श्रेष्ठ पत्नी और आदर्श माँ बन सकती है ।
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