Hindi, asked by Ammy2493, 11 months ago

लक्ष्मण परशुराम संवाद’ को कथासार अपने शब्दों में लिखिए।

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Answered by shishir303
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लक्ष्मण-परशुराम संवाद की कथा का सार अपने शब्दों में इस प्रकार है...  

महाराजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के विवाह के लिए एक स्वयंवर रचा, जिसमें उन्होंने भगवान शिव के प्राचीन धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने वाले वीर के साथ ही अपनी पुत्री सीता का विवाह करने की शर्त रखी थी।  

दूर-दूर देशों से अनेक राजा इस स्वयंवर में भाग लेने के लिए आए और अनेक राजाओं ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने की कोशिश की, लेकिन कोई भी सफल नहीं हो पाया। अयोध्या के राजकुमार श्री राम भी अपने अनुज भ्राता लक्ष्मण के साथ उस स्वयंवर में भाग लेने को आए थे। श्री राम ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने में सफलता प्राप्त कर ली। जब उन्होंने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाकर उसे खींचा धनुष बीच में से टूट गया।  

जैसे ही धनुष टूटा तो यह सूचना मुनि परशुराम को मिल गई और वह तुरंत स्वयंवर स्थल पर पहुंच गए क्योंकि यह धनुष परशुराम में ही राजा जनक के पास रखा था।धनुष टूटने की बात सुनकर अत्यंत क्रोधित हुए जब उन्होंने राजा जनक से पूछा कि यह धनुष किसने तोड़ा तो राम ने विनम्रता पूर्वक उनसे संवाद किया और उनका क्रोध शांत करने की चेष्टा की और कहा कि धनुष को तोड़ने वाला उनका कोई दास ही होगा।  

यह सुनकर परशुराम भड़क गए वह बोले की यह काम सेवक का नहीं हो सकता बल्कि यह काम किसी शत्रु का हो सकता है। यह धनुष तोड़ने वाला तुरंत मेरे सामने आ जाए नहीं तो सभी मारे जाएंगे। यह सुनकर लक्ष्मण ने कहा कि उन्होंने बचपन में अनेक धनुष थोड़े थे तब तो किसी ने विरोध नहीं किया। इस धनुष से उन्हें इतना प्रेम क्यों है।  

अपने गुरु भगवान शिव के धनुष की तुलना अन्य साधारण धनुष से किए जाने पर परशुराम बेहद क्रोधित हुए। लक्ष्मण ने परशुराम से कहा कि धनुष तो श्री राम के छूते ही टूट गया। इसमें उनका कोई दोष नहीं। आप अकारण क्रोध कर रहे हैं। यह सुनकर परशुराम ने लक्ष्मण को क्रोध करते हुए कटु वचन सुनाए। उन्होंने खुद को क्षत्रियों का शत्रु बताते हुए अपनी वीरता का बखान किया।  

तब लक्ष्मण ने कहा कि माना कि आप पहाड़ पुराना उखाड़ना जानते हैं, लेकिन हम भी कोई छुई-मुई का पौधा नहीं कि आपकी उंगली दिखाने से ही डर जाएंगे। आप ब्राह्मण हैं इसलिए मैं भी आप पर क्रोध नहीं करना चाहता। यह सुनकर परशुराम भी अत्यधिक क्रोधित हो गए उन्होंने विश्वामित्र से कहा कि इस  मूर्ख बालक को हमारे प्रताप और बल के बारे में बता कर समझाओ।  

इस पर लक्ष्मण ने कहा कि शूरवीर  शत्रु के सामने वीरता दिखाते हैं। व्यर्थ का प्रलाप नहीं करते। यह सुनकर परशुराम अपना फरसा लेकर लड़ने के लिए तत्पर हो गए। वह बोले यह कड़वा वचन बोलने वाला बालक मारने योग्य है। तब विश्वामित्र ने उन्हें शांत कराना चाहा परंतु लक्ष्मण ने भी क्रोध में आकर कठोर और अपमानजनक बातें प्रारंभ कर दीं।  

सभा में बैठे अन्य लोगों ने इसे अनुचित बताया। तब राम ने आंखों के संकेत से लक्ष्मण को चुप कराया और परशुराम की क्रोध अग्नि को शांत करने के लिए उनसे मधुर स्वर में कुछ बातें कहीं और उनसे विनम्रता से क्रोध की शांति के लिए निवेदन करने लगे। इस तरह लक्ष्मण-परशुराम संवाद का अंत हुआ।

Answered by Siddhi6410
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