M.M.40
खंड-क (अपति
1. निम्न गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उर
कर्म के मार्ग पर आनंद पूर्वक चलता हुआ लोक उपकारी उत्सा
उसकी दशा कर्म न करने वाले की अपेक्षा अधिकतर अवस्था
जो जीवन बीता,वह संतोष या आनंद में बीता।, उसके उपरांत
प्रयत्न नहीं किया।। बुद्धि द्वारा पूर्ण रूप से निश्चित की हुई व्या
मूल विषय तो कुछ और रहता है,पर उस आनंद के कारण एक
हर्ष के साथ अग्रसर हो करती है इसी प्रसन्नता और तत्परता
जा रहे हैं। यदि किसी मनुष्य को बहुत सा लाभ हो जाता है
काम उसके सामने आते हैं उन सब को वह बड़े हर्ष व तत्पर
उसके इस हर्ष और तत्परता को ही उत्साह कहते हैं।
प्रश्र-
(क) प्रयत्न किसे कहते हैं?(2)
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I CAN'T UNDERSTAND
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SORRY...
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