मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ,
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ!
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this is a poem
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kavyan ke anusar kavi ke Jivan Mein Prem Kaise Aaya spasht kijiye
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