Hindi, asked by yasmeenkhan4251, 4 months ago

मैं मजदूर मुझे देवों की बस्ती से क्या
अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाये।
अम्बर में जितने तारे, उतने वर्षों से
मेरे पुरखों ने धरती का रूप सँवारा ।
धरती को सुंदरतम
करने की ममता में
बिता चुका है कई
पीढ़ियाँ, वंश
हमारा।
और आगे आने
वाली सदियों में
मेरे वंशज धरती का
उद्धार करेंगे।
इस प्यासी धरती के
हित में ही लाया था
हिमगिरी चीर सुखद गंगा की निर्मल धारा ।
मैंने रेगिस्तानों की रेती धो-धोकर
वन्ध्या धरती पर भी स्वर्णिम पुष्प खिलाए।
मैं मजदूर मुझे देवों की बस्ती से क्या?​

Answers

Answered by roushanara893
13

Answer:

hi

Explanation:

aapka q kya hai plz tell me

Answered by bhatiamona
2

मैं मजदूर मुझे देवों की बस्ती से क्या

अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाये।

अम्बर में जितने तारे, उतने वर्षों से

मेरे पुरखों ने धरती का रूप सँवारा ।

धरती को सुंदरतम

करने की ममता में

बिता चुका है कई

पीढ़ियाँ, वंश

हमारा।

और आगे आने

वाली सदियों में

मेरे वंशज धरती का

उद्धार करेंगे।

इस प्यासी धरती के

हित में ही लाया था

हिमगिरी चीर सुखद गंगा की निर्मल धारा ।

मैंने रेगिस्तानों की रेती धो-धोकर

वन्ध्या धरती पर भी स्वर्णिम पुष्प खिलाए।

मैं मजदूर मुझे देवों की बस्ती से क्या?​

भावार्थ :  रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित कविता दी इन पंक्तियों का भावार्थ यह है कि कवि ने यहां इस कविता के माध्यम से मजदूरों के महत्व को बताया है। एक मजदूर कहता है कि मुझे देवों की बस्ती यानी सभी तरह के सुख-सुविधा वाले बस्ती से क्या मतलब यानी मुझे स्वर्ग से कोई लेना-देना नहीं। मैंने अपने तो अपने परिश्रम से अपने बाहुबल से इस धरती पर सैकड़ों बार स्वर्ग बनाए हैं। आकाश में जितने तारे हैं, इतने वर्षों से मेरे पूर्वजों ने इस धरती को अपने परिश्रम से निरंतर संवारा है। इस धरती को अधिक से अधिक सुंदर बनाने में इस धरती को ममतामयी बनाने में मेरी कई पूर्णिया कई वर्ष लग चुके हैं और आने वाले मेरी कई पीढ़ियां कई वंश भी इस धरती का यूं ही निरंतर उद्धार करते रहेंगे।

एक श्रमिक के लिए उसका परिश्रम ही सबसे बड़ा हथियार होता है और वह अपने परिश्रम से कुछ भी कार्य को संभव बना सकता है। जिस तरह भागीरथ ने अपने बल से धरती की प्यास बुझाने के लिए हिमालय से गंगा की निर्मल धारा निकाला। उसी तरह मैंने भी सुखी सुखी बंजर धरती पर अपने परिश्रम बल से खिलाए हैं। मुझे क्या देवों की बस्ती से मैं तो जहाँ-जहाँ देवों की बस्ती बना सकता हूँ।

#SPJ2

Learn more:

https://brainly.in/question/54065381

एक बने हम, नेक बने हम कविता का भावार्थ।

https://brainly.in/question/48181992

घोर अंधकार हो, चल रही बयार हो,आज द्वार-द्वार पर यह दिया बुझे नहीं।यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है।शक्ति का दिया हुआ, शक्ति को दिया हुआ,भक्ति से दिया हुआ, यह स्वतंत्रता का दिया,रुक रही न नाव हो, जोर का बहाव हो,आज गंगधार पर यह दिया बुझे नहीं!यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है।

सप्रसंग भावार्थ लिखिए।​

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