Hindi, asked by ojij, 1 year ago

मेरे जीवन की आकांक्षा पर अनुच्छेद लिखिए ?

Answers

Answered by Bajwa302
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ऐसा कहा जाता है कि "अपने सपने को पूरा करने के लिए आपको जगाए जाने की ज़रूरत है" अपने जीवन में एक उद्देश्य या लक्ष्य रखना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह न केवल आपके पथ को सही बना देगा और अपने सपनों को पूरा करेगा, लेकिन यह आपको अन्य लोगों और मित्रों को भी प्रेरित करेगा। यह सपना रखना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि सपने के बिना कोई व्यक्ति बिना किसी उद्देश्य के लिए या लक्ष्य कर सकता है। यह हमेशा मेरा उद्देश्य था और आईपीएस अधिकारी बनने का सपना था क्योंकि मेरे दादा अपने समय के दौरान आईपीएस अधिकारी थे। वह हमेशा उन दिलचस्प घटनाओं को कहेंगे जो उनके साथ हुए और कैसे उन्होंने अपने देश की अखंडता और जुनून के साथ काम किया, वह भी मुझे उसके जैसे आईपीएस अधिकारी बनना चाहते थे। मैं भी अपने समर्पण के साथ अपने देश की सेवा करना चाहता हूं क्योंकि आईपीएस अधिकारी बनने के बाद मैं अपने देशों की समस्याओं को सुलझाने में सक्षम हूं और देश को बेहतर और अधिक विकसित करने में भी मदद कर सकता हूं। मैं देश में अपराध की समस्याओं को हल करना चाहता हूं और मैं किसी भी बाहरी बलों से जनता को सुरक्षित रखना चाहता हूं। मेरे परिवार ने हमेशा मुझे अपने सपनों का पीछा करने के लिए प्रोत्साहित किया है तो जब मैं बड़ा हो जाता हूं, तो मैं प्रवेश परीक्षा में अच्छे अंक अर्जित करना चाहता हूं और मैं अपने सपने को पूरा करने में कड़ी मेहनत करना चाहता हूं क्योंकि कड़ी मेहनत के बिना कुछ भी पूरी तरह से पूरा नहीं किया जा सकता है। यदि मेरा सपना सफल होगा, तो मैं सभी के लिए एक उदाहरण बनाना चाहता हूं कि कुछ भी असंभव नहीं है ।
Answered by babitachoudhary00260
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Explanation:

किसी भी कार्य का आरम्भ सर्वप्रथम आकांक्षा के रूप में होता है। आकांक्षा उठते ही उसकी पूर्ति के लिए मस्तिष्क कल्पना द्वारा उसके लिए योजना बनाने लगता है। बुद्धि आकांक्षा पूर्ति का उपाय खोजती है और विचार-चिंतन के रूप में कर्म का बीजारोपण होने लगता है।उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति धनवान और साधन संपन्न बनने की आकांक्षा रखता है तो उसके विचार, उसकी बुद्धि और उसका मस्तिष्क आकांक्षा के साथ ही सक्रिय हो उठेंगे। यदि उपलब्ध साधन ही पर्याप्त जँचते हैं और अधिक धनसंग्रह की इच्छा नहीं उठती तो बुद्धि और विचार उधर जायेंगे भी नहीं।इस प्रकार मनुष्य का स्तर और उसकी जीवन पद्धति बहुत कुछ आकाँक्षाओं पर निर्भर करती है।

किसी भी कार्य का आरम्भ सर्वप्रथम आकांक्षा के रूप में होता है। आकांक्षा उठते ही उसकी पूर्ति के लिए मस्तिष्क कल्पना द्वारा उसके लिए योजना बनाने लगता है। बुद्धि आकांक्षा पूर्ति का उपाय खोजती है और विचार-चिंतन के रूप में कर्म का बीजारोपण होने लगता है।उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति धनवान और साधन संपन्न बनने की आकांक्षा रखता है तो उसके विचार, उसकी बुद्धि और उसका मस्तिष्क आकांक्षा के साथ ही सक्रिय हो उठेंगे। यदि उपलब्ध साधन ही पर्याप्त जँचते हैं और अधिक धनसंग्रह की इच्छा नहीं उठती तो बुद्धि और विचार उधर जायेंगे भी नहीं।इस प्रकार मनुष्य का स्तर और उसकी जीवन पद्धति बहुत कुछ आकाँक्षाओं पर निर्भर करती है।प्रगति की आकांक्षा स्वाभाविक भी है और उचित, उपयोगी भी। उसमें व्यक्ति का निजी लाभ भी है और समाज का समग्र हित साधन भी।

किसी भी कार्य का आरम्भ सर्वप्रथम आकांक्षा के रूप में होता है। आकांक्षा उठते ही उसकी पूर्ति के लिए मस्तिष्क कल्पना द्वारा उसके लिए योजना बनाने लगता है। बुद्धि आकांक्षा पूर्ति का उपाय खोजती है और विचार-चिंतन के रूप में कर्म का बीजारोपण होने लगता है।उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति धनवान और साधन संपन्न बनने की आकांक्षा रखता है तो उसके विचार, उसकी बुद्धि और उसका मस्तिष्क आकांक्षा के साथ ही सक्रिय हो उठेंगे। यदि उपलब्ध साधन ही पर्याप्त जँचते हैं और अधिक धनसंग्रह की इच्छा नहीं उठती तो बुद्धि और विचार उधर जायेंगे भी नहीं।इस प्रकार मनुष्य का स्तर और उसकी जीवन पद्धति बहुत कुछ आकाँक्षाओं पर निर्भर करती है।प्रगति की आकांक्षा स्वाभाविक भी है और उचित, उपयोगी भी। उसमें व्यक्ति का निजी लाभ भी है और समाज का समग्र हित साधन भी।इच्छा के त्याग वाली उक्ति जिन आध्यात्म ग्रंथों में पाई जाती है, वहाँ उसका प्रयोजन प्रतिफल का, आतुरता का परित्याग करने भर से है।

किसी भी कार्य का आरम्भ सर्वप्रथम आकांक्षा के रूप में होता है। आकांक्षा उठते ही उसकी पूर्ति के लिए मस्तिष्क कल्पना द्वारा उसके लिए योजना बनाने लगता है। बुद्धि आकांक्षा पूर्ति का उपाय खोजती है और विचार-चिंतन के रूप में कर्म का बीजारोपण होने लगता है।उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति धनवान और साधन संपन्न बनने की आकांक्षा रखता है तो उसके विचार, उसकी बुद्धि और उसका मस्तिष्क आकांक्षा के साथ ही सक्रिय हो उठेंगे। यदि उपलब्ध साधन ही पर्याप्त जँचते हैं और अधिक धनसंग्रह की इच्छा नहीं उठती तो बुद्धि और विचार उधर जायेंगे भी नहीं।इस प्रकार मनुष्य का स्तर और उसकी जीवन पद्धति बहुत कुछ आकाँक्षाओं पर निर्भर करती है।प्रगति की आकांक्षा स्वाभाविक भी है और उचित, उपयोगी भी। उसमें व्यक्ति का निजी लाभ भी है और समाज का समग्र हित साधन भी।इच्छा के त्याग वाली उक्ति जिन आध्यात्म ग्रंथों में पाई जाती है, वहाँ उसका प्रयोजन प्रतिफल का, आतुरता का परित्याग करने भर से है।हम क्या हैं, हमारी परिस्थिति कैसी है और हम किस धरातल पर खड़े हैं, हमारी कितनी क्षमताएँ हैं? इन्हें जाने, समझे बिना महत्वाकांक्षाओं के पीछे नहीं दौड़ा जाना चाहिए। अपने सम्बन्ध में न कोई काल्पनिक धारणाएँ रखे और न ऐसी कोई आकांक्षा रखे जो की अपनी प्रकृति के अनुकूल न हो।

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