मौर्य वंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य के बारे में व्याख्या करें।
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चंद्रगुप्त मौर्य ने नंद वंश के शासक धनानंद को पराजित किया और 25 वर्ष की आयु में चंद्रगुप्त मौर्य मगध की राज गद्दी पर बैठा। इस कार्य में चंद्रगुप्त की मदद चंद्रगुप्त के गुरु चाणक्य ने की थी, जिन्होंने प्रतिज्ञा ली थी कि वह नंद वंश के शासक धनानंद से अपने अपमान का बदला लेंगे। इसके लिए उन्होंने चंद्रगुप्त को तैयार किया।
चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने विजय अभियान का प्रारंभ अखिल भारतीय साम्राज्य की स्थापना करके किया। 305 ईसवी पूर्व में उसने यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर को हराया और सेल्यूकस से संधि भी की। जिसके फलस्वरूप चंद्रगुप्त को पूर्वी अफगानिस्तान, बलूचिस्तान और सिंधु नदी का पश्चिम क्षेत्र उपहार में मिला साथ ही चन्द्रगुप्त ने सेल्युकस की पुत्री से विवाह भी किया। सेल्युकस ने मेगस्थनीज को राजदूत के रूप में चंद्रगुप्त के दरबार में भेजा था।
चंद्रगुप्त मौर्य का विशाल साम्राज्य काबुल, हेरात, कंधार, बलूचिस्तान, पंजाब, गंगा जमुना के मैदान, बिहार, बंगाल, गुजरात और कश्मीर के भूभाग तक फैला हुआ था। चंद्रगुप्त ने अपनी वृद्धावस्था में भद्रबाहु से जैन धर्म की दीक्षा ली और 298 ईसवी पूर्व में उपवास करके अपना शरीर त्याग दिया।
मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य जिन्होंने 8 महाजनपदास पर अपना अधिकार जमाया। और धनानंद को हराकर नंद वंश को समाप्त किया। धनानंद को हराने में चंद्रगुप्त की मदद चाणक्य ने किया जीन्हे हम कौटिल्य के नाम से भी जानते हैं।