Mahabharat ke Yudh ke baad Shri Krishna Ne kitne varsh Tak Dwarka mein Raj kiya
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द्वारका कई द्वारों का शहर (संस्कृत में द्वारवती)। इसी कारण इसका नाम द्वारका पड़ा। भगवान कृष्ण की पौराणिक राजधानी थी, जिसकी स्थापना मथुरा से पलायन के बाद की थी। इस शहर के चारों तरफ ऊंची-ऊंची दीवारें थी, जिनमें कई सौ दरवाजे थे। द्वारका को द्वारावती, कुशस्थली, आनर्तक, ओखा-मंडल, गोमती द्वारका, चक्रतीर्थ, अंतरद्वीप, वारिदुर्ग, उदधिमध्यस्थान के नाम से भी जाना जाता है। गुजरात के दक्षिण-पश्चिम कोने में स्थित समुद्र किनारे चार धामों में से एक धाम और 7 पवित्र पुरियों में से एक पुरी है द्वारका। वर्तमान में दो द्वारका हैं, एक गोमती द्वारका, दसूरी बेट द्वारका। गोमती द्वारका धाम है, जबकि बेट द्वारका पुरी है। बेट द्वारका समुद्र के बीच एक टापू पर स्थित है।
कृष्ण ने राजा कंस का वध कर दिया, तब कंस के ससुर मगधिपति जरासंघ ने यादवों को खत्म करने का फैसला किया। वे मथुरा और यादवों पर बार-बार आक्रमण करते थे। इसलिए यादवों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कृष्ण ने मथुरा छोड़ने का निर्णय लिया। विनता के पुत्र गरुड़ की सलाह और ककुद्मी के आमंत्रण पर कृष्ण कुशस्थली आ गए।पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराजा रैवतक के समुद्र में कुश बिछाकर यज्ञ करने के कारण ही इस नगरी का नाम कुशस्थली हुआ था। यहीं द्वारकाधीश का प्रसिद्ध मंदिर भी है। बाद में त्रिविक्रम भगवान ने कुश नामक दानव का वध भी यहीं किया था। त्रिविक्रम का मंदिर द्वारका में रणछोड़जी के मंदिर के निकट है। ऐसा जान पड़ता है कि महाराज रैवतक (बलराम की पत्नी रेवती के पिता) ने प्रथम बार, समुद्र में से कुछ भूमि बाहर निकाल कर यह नगरी बसाई होगी।
कृष्ण अपने 18 साथियों के साथ द्वारका आए थे। यहां उन्होंने 36 साल तक राज किया। भगवान कृष्ण के विदा होते ही द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई थी। मान्यता है कि उस समय समुद्र में इतनी ऊंची लहरें उठी थीं द्वारका को एक ही बार में पानी में डूबो दिया था। द्वारका के डूबने के कहानी कुछ वैसी ही है जैसी दुनियाभर में ग्रीक सभ्यता का शहर ‘अटलांटिस’ की कहानी है। अटलांटिस को भी एक बड़ी बाढ़ ने तबाह कर दिया था। द्वारका के जलमगन होने के बाद कृष्ण के परपोते वज्रनाभ द्वारका के यदुवंश के अंतिम शासक थे, जो यादवों के अंतिम युद्ध में जीवित रह गए। द्वारका के समुद्र में डूब जाने के बाद अर्जुन द्वारका आए और वज्रनाभ और अन्य जीवित यादवों को हस्तिनापुर ले आए। कृष्ण के वज्रनाभ को हस्तिनापुर में मथुरा का राजा घोषित किया। वज्रनाभ के नाम से मथुरा क्षेत्र को वज्रमंडल भी कहा जाता है।