मनुष्य को मुद्रित पुस्तकों की क्यों जरूरत पड़ी?
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मनुष्य को मुद्रित पुस्तकों की आवश्यकता इसलिए पड़ी, क्योंकि प्राचीन काल में जब तक मुद्रण कला यानी यांत्रिक छपाई का आविष्कार नहीं हुआ नहीं हुआ था, उससे पहले जो भी पुस्तकें लिखी जाती वह स्वयं हाथों द्वारा लेखकों द्वारा लिखी जाती थीं। यह काम अधिकतर धार्मिक स्थानों से संबंध रखने वाले व्यक्ति ही करते थे और पुस्तकें भी अधिकतर धर्म-ज्ञान से संबंधित ही होती थीं।
हाथ से पुस्तकें लिखने का कार्य बेहद श्रमसाध्य होता था और एक पुस्तक लिखने में काफी समय लग जाता था। ये पुस्तकें चूंकि हाथ से बेहद श्रम और समय लगाकर तैयार की जाती थीं, इसलिये इनकी संख्या भी केवल एक होती थी। इसी समस्या से निजात पाने के लिए पुस्तक मुद्रण की आवश्यकता महसूस हुई।
उस समय पुस्तकों की प्रतियां जल्दी-जल्दी तैयार करने के उपाय खोजे जाने लगे। इन्हीं उपाय खोजने के लिए किए गए प्रयोगों के परिणाम स्वरूप ही पुस्तक मुद्रण तकनीक का जन्म हुआ। उस समय लकड़ी के ब्लॉक बनाकर छपाई आरंभ हुई। इन ब्लॉकों पुस्तक के अक्षर और चित्र दोनों ही उत्कीर्ण कर लिये जाते और फिर उत्कीर्ण किये अक्षरों आदि पर स्याही लगाकर कागज पर ठप्पा मारकर छाप दिए जाते।
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पाठ - 7 : “प्रतिलिपि के विकास की अवस्थाएँ”
विषय : ग्राफिक डिजायन - एक कहानी [कक्षा - 11]
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