मनुष्यों में भाषा का अर्जन किस प्रकार होता है?
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जिस व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य और मानसिकता जिस स्तर की होगी, उनकी भाषा के शब्द और उनके मुख्यार्थ भी उसी स्तर के होंगे। समाज में रहकर व्यापार या लोगों से बातचीत के लिए मनुष्य के पास भाषा ही एकमात्र माध्यम है। मनुष्य को सभ्य और पूर्ण बनाने के लिए शिक्षा जरूरी है और सभी प्रकार की शिक्षा का माध्यम भाषा ही है।
भाषा अर्जन से तात्पर्य अपने आसपास के वाह वातावरण से संप्रेषण के माध्यम से कुछ सीखना है।
भाषा अर्जन एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। जिसके अंतर्गत मनुष्य अपने आसपास के वातावरण से अपने माता पिता से अपने प्रियजनों से और अपने आसपास की गतिविधियों के संपर्क में रहकर कुछ सीखता है। यह स्वाभाविक एवं प्राकृतिक प्रक्रिया है, इसके लिए किसी औपचारिक साधन की जरूरत नहीं पड़ती। मनुष्य अपने आसपास के व्यक्तियों से विचारों के संप्रेषण के माध्यम से जो भाषा सर्वप्रथम सीखता है वही उसकी मातृभाषा कहलाती है। मनुष्य की स्वाभाविक रूप से भाषा सीखने की यह प्रक्रिया उसकी 2 वर्ष की आयु से आरंभ हो जाती है जो 12 से 14 वर्ष की आयु तक चलती रहती है।
मनुष्य भाषा का अर्जन किस तरह करता है और उसका प्रयोग कैसे करता है? मनुष्य अपनी शैशवावस्था में पहली बार जब कोई शब्द कहना शुरु करता है तो उसके परिजनों द्वारा उसकी इस क्रिया को दोहराने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। उसके पालनकर्ता शिशु के द्वारा की गई इस प्रक्रिया से आनंदित होते हैं। इसी प्रक्रिया के क्रम में मनुष्य धीरे-धीरे नए-नए शब्दों को सीखता जाता है।
प्रारंभ में अपने घर में प्रयोग किए जाने वाले शब्दों को सीखता है। जो कि उसकी मातृ भाषा कहलाती है। फिर वह विद्यालय जाकर औपचारिक भाषा ग्रहण करता है जो उसकी मातृभाषा से अलग भाषा भी हो सकती है या उसकी मातृभाषा भी हो सकती है इस तरह मनुष्य में भाषा का अर्जन एक स्वभाविक एवं औपचारिक प्रक्रिया के तहत होता रहता है।
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