Hindi, asked by paporirai6195, 10 months ago

मनुष्यता' कविता का प्रतिपाद्य लिखिए I

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Answered by shishir303
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“मनुष्यता” कविता ‘मैथिलीशरण गुप्त’ द्वारा लिखी गई कविता है। इस कविता के माध्यम से कवि ने मनुष्यता से रहने का संदेश दिया है।

कविता का प्रतिपाद्य है कि मनुष्य को मनुष्यता  को अपनाते हुए जीना चाहिए। मनुष्यता का तात्पर्य है, अपने हित के साथ-साथ दूसरों के हित के बारे में भी सोचना। जो मनुष्य केवल अपने लिए जीता है वह पशु के समान है। खाना-पीना और सोना यह केवल पशु का कार्य होता है, जो केवल अपने लिए जीता है। भगवान ने मनुष्य को बुद्धि और विवेक भी दिया है और संवेदनशीलता भी दी है। भगवान ने मनुष्य को अनेक ऐसे गुण दिए हैं, जो उसे पशु से भिन्न करते हैं।

कवि का कहना है कि मनुष्य को मनुष्यता से जीते हुए सदैव परोपकार के कार्य करना चाहिए। दूसरों के हित के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए। जो मनुष्य परमार्थ के लिए जीते हैं, उन्हें उनकी मृत्यु के बाद भी सारा संसार सदियों तक याद रखता है। हमारे पास जो भी धन-संपत्ति है, हमें उसका अभिमान कभी नहीं करना चाहिए। भगवान ने हमें जो गुण दियें है, उनका सदुपयोग करते हुए सदैव सब लोगों के साथ मिलकर चलना चाहिए।

इस संसार में दधीचि, शिवि, रंतिदेव, कर्ण, हरिश्चंद्र के रूप ऐसे अनेक महान पुरुष हुए हैं, जिन्होंने में परमार्थ की खातिर अपने प्राणों तक का बलिदान करने में कोई संकोच नही किया। हमें भी ऐसे ही महापुरुषों से सीख लेकर मानवता को अपनाना चाहिए जो सबसे पड़ा धर्म है।

सारे मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान है और किसी में भी भेदभाव ना करते हुए सदैव सबके साथ प्रेम एवं सद्भाव से रहना चाहिए. यही मनुष्यता कविता का मुख्य संदेश है।

Answered by luckvicky2005
38

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Manushyata "मनुष्यता" Class 10 Hindi Lesson Explanation, Summary, Question Answers

Manushyata 'मनुष्यता' Explanation, Summary, Question and Answers and Difficult word meaning

Manushyata (मनुष्यता) - CBSE Class 10 Hindi Lesson summary with detailed explanation of the lesson 'Manushyata' by Maithlisharan Gupt along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary and all the exercises, Question and Answers given at the back of the lesson.

Manushyata (मनुष्यता) Class 10 Hindi Chapter 4 - कक्षा 10 हिंदी पाठ 4 मनुष्यता

manushyata

Author Intro - कवि परिचय

कवि - मैथिलीशरण गुप्त

जन्म - 1886( चिरगाँव )

मृत्यु - 1964

Manushyata (मनुष्यता) Chapter Introduction - पाठ परिचय

प्रकृति के अन्य प्राणियों की तुलना में मनुष्य में सोचने की शक्ति अधिक होती है। वह अपने ही नहीं दूसरों के सुख - दुःख का भी ख्याल रखता है और दूसरों के लिए कुछ करने में समर्थ होता है। जानवर जब चरागाह में जाते हैं तो केवल अपने लिए चर कर आते हैं, परन्तु मनुष्य ऐसा नहीं है। वह जो कुछ भी कमाता है ,जो कुछ भी बनाता है ,वह दूसरों के लिए भी करता है और दूसरों की सहायता से भी करता है।

manushyata

प्रस्तुत पाठ का कवि अपनों के सुख - दुःख की चिंता करने वालों को मनुष्य तो मानता है परन्तु यह मानने को तैयार नहीं है कि उन मनुष्यों में मनुष्यता के सारे गुण होते हैं। कवि केवल उन मनुष्यों को महान मानता है जो अपनों के सुख - दुःख से पहले दूसरों की चिंता करते हैं। वह मनुष्यों में ऐसे गुण चाहता है जिसके कारण कोई भी मनुष्य इस मृत्युलोक से चले जाने के बाद भी सदियों तक दूसरों की यादों में रहता है अर्थात वह मृत्यु के बाद भी अमर रहता है। आखिर क्या है वे गुण ? यह इस पाठ में जानेंगे -

Manushyata (मनुष्यता) Chapter Summary - पाठ सार

इस कविता में कवि मनुष्यता का सही अर्थ समझाने का प्रयास कर रहा है। पहले भाग में कवि कहता है कि मृत्यु से नहीं डरना चाहिए क्योंकि मृत्यु तो निश्चित है पर हमें ऐसा कुछ करना चाहिए कि लोग हमें मृत्यु के बाद भी याद रखें। असली मनुष्य वही है जो दूसरों के लिए जीना व मरना सीख ले। दूसरे भाग में कवि कहता है कि हमें उदार बनना चाहिए क्योंकि उदार मनुष्यों का हर जगह गुण गान होता है। मनुष्य वही कहलाता है जो दूसरों की चिंता करे। तीसरे भाग में कवि कहता है कि पुराणों में उन लोगों के बहुत उदाहरण हैं जिन्हे उनकी त्याग भाव के लिए आज भी याद किया जाता है। सच्चा मनुष्य वही है जो त्याग भाव जान ले। चौथे भाग में कवि कहता है कि मनुष्यों के मन में दया और करुणा का भाव होना चाहिए, मनुष्य वही कहलाता है जो दूसरों के लिए मरता और जीता है। पांचवें भाग में कवि कहना चाहता है कि यहाँ कोई अनाथ नहीं है क्योंकि हम सब उस एक ईश्वर की संतान हैं। हमें भेदभाव से ऊपर उठ कर सोचना चाहिए।छठे भाग में कवि कहना चाहता है कि हमें दयालु बनना चाहिए क्योंकि दयालु और परोपकारी मनुष्यों का देवता भी स्वागत करते हैं। अतः हमें दूसरों का परोपकार व कल्याण करना चाहिए।सातवें भाग में कवि कहता है कि मनुष्यों के बाहरी कर्म अलग अलग हो परन्तु हमारे वेद साक्षी है की सभी की आत्मा एक है ,हम सब एक ही ईश्वर की संतान है अतः सभी मनुष्य भाई -बंधु हैं और मनुष्य वही है जो दुःख में दूसरे मनुष्यों के काम आये।अंतिम भाग में कवि कहना चाहता है कि विपत्ति और विघ्न को हटाते हुए मनुष्य को अपने चुने हुए रास्तों पर चलना चाहिए ,आपसी समझ को बनाये रखना चाहिए और भेदभाव को नहीं बढ़ाना चाहिए ऐसी सोच वाला मनुष्य ही अपना और दूसरों का कल्याण और उद्धार कर सकता है।

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