Hindi, asked by karina66, 1 year ago

mansik Shakti ke bare mein shape Mein bataiye​


karina66: please snd me this answer
Anonymous: Yaa

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Answered by rajnish124
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Mansik shakti is a tremendous power we have if we usE it in proper way we can achieve what we want


karina66: what rubbish this nonsense
karina66: say that you that is 100 words or 200 words we can write in 20or 30 words
Answered by Anonymous
0

Hi beautiful

Here is ur answer

मानसिक समस्याएँ सभी आम-खास लोगों के साथ होती हैं। उनसे कैसे निपटा जाए और मन की शक्ति को बढ़ाने के लिए कौन से व्यावहारिक उपाय अपनाये जायें इस पुस्तक में अनुभवी और प्रतिष्ठित लेखक ने इसी पर प्रकाश डाला है। मानसिक विकृतियों से ग्रस्त रोगियों के लिए भी यह पुस्तक उपयोगी है, सरल-सुबोध भाषा और रोचक बोधगम्य शैली।

क्या यह सम्भव है कि हम मानसिक शक्ति को उन्नत करने की कोई निश्चित योजना बना सकें ? या उसे अस्वास्थ्य व उन्माद से बचाने के लिए कुछ ऐसे उपाय निकाल सकें जिनसे हमें कभी मानसिक निर्बलता अनुभव न हो ? मैं इसे संभव मानता हूँ। हमने चिकित्सा के क्षेत्र में आश्चर्यजनक आविष्कार किए हैं, किन्तु उनका विषय अभी तक शारीरिक रोग ही रहे हैं। मानसिक रोगों के अवरोध के लिए हम अभी प्रयत्नशील नहीं हुए; यह हमारा दुर्भाग्य है। इस क्षेत्र को रहस्यमय कहने से ही हम इसके परिणामों से बच नहीं जाते। इसे देवता का अभिशाप कहकर असाध्य कोटि में रखने में भी हमारा काम नहीं चलता। केवल धार्मिक विश्वासों के आधार पर भी हम मनोवैज्ञानिक ग्रन्थियों का युक्तियुक्त समाधान नहीं कर सकते।

मानसशास्त्र ने इस दिशा में सराहनीय प्रयत्न किए हैं। मानसशास्त्र कोई कल्पित विज्ञान नहीं हैं, जीवन के अनुभवों के आधार पर मनोवैज्ञानिकों ने कुछ स्थापनाएँ बनाई हैं। इस यत्न को प्रारम्भ हुए पचास-साठ वर्ष से अधिक व्यतीत नहीं हुआ। इतने काल में मनोवैज्ञानिकों ने मनुष्य की मानसिक अवस्थाओं का अध्ययन करके कुछ ऐसे सत्य सामने रखे हैं जो मनुष्य-जीवन में असाधारणतया सभी जगह घटित होते हैं।

मानसिक स्वास्थ्य की चर्चा सर्वसाधारण के लिए भी उपयोगी है; केवल मानसिक रोगों से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए नहीं। जिस तरह शारीरिक स्वास्थ्य के नियमों का अनुशीलन केवल रोगियों के लिए ही उपयोगी नहीं होता बल्कि स्वस्थ व्यक्तियों की स्वास्थ्य-रक्षा के लिए भी होता है, मानसिक रोगों का विश्लेषण भी इसी तरह प्रत्येक स्वस्थ व अस्वस्थ व्यक्ति के लिए उपयोगी हो सकता है। आजकल का संघर्षमय जीवन मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत संकट का है। विज्ञान और सभ्यता के विस्तार ने मनुष्य की मानसिक वृत्तियों को भी बड़े विकट संघर्ष में डाल दिया है। मानसिक संतुलन आज से वर्षों पूर्व जितना कठिन था, आज उससे दस गुना अधिक हो गया है। मानसिक रोगों के अस्पतालों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जाती है। उन्माद के रोगियों की संख्या में भी प्रतिवर्ष हज़ारों की वृद्धि हो रही है। अमेरिका जैसे सभ्य देशों में प्रतिवर्ष कई हज़ार मानसिक उन्माद के नये रोगी चिकित्सा के लिए जाते हैं। हमारे देश में मानसिक स्वास्थ का पतन इतना विकट नहीं हुआ है, फिर भी संघर्षमय जीवन की वृद्धि होती जा रही है।

अभी तक हमारे देश के साहित्य में, मानसशास्त्र व मानस-चिकित्सा के संबंध में उपयोगी पुस्तकों का अभाव-सा है। प्राचीन साहित्य में दर्शनकारों ने मानसिक विज्ञान का पर्याप्त अन्वेषण किया है। किन्तु वह प्रयत्न केवल अध्यात्मिक दृष्टि से किया गया था। हमारे शास्त्रों का लक्ष्य प्राय: मनुष्य की मानसिक वृत्तियों को मोक्ष की सिद्धि के लिए तैयार करना था। पातञ्जल योगशास्त्र प्राचीन मानस-विज्ञान का सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ है। किन्तु उसके अनुसार भी मनुष्य के मन की अन्त:-प्रवृत्तियों को मोक्ष-साधन में अवरोध माना गया है। उस समय के अन्य मानसशास्त्रों ने भी मनुष्य की वृत्ति को स्वभावत: पाप की ओर ले जानेवाला कहा है। उनके अध्ययन से जनसाधारण यही निष्कर्ष निकालता है कि मनुष्य की अन्त:प्रवृत्तियाँ पापमूलक हैं। इस विकृत कल्पना के आधार पर ही हमारे काल के नीतिशास्त्रों और धर्मशास्त्रों की रचना हुई है।

जो स्वाभाविक है, वह अनैतिक है; और जो कार्य हमारी सहज प्रवृत्तियों का उच्छेद करते हैं, वही नैतिक कार्य है, यह कल्पना ही इन शास्त्रों का आधार रही। इसके परिणामस्वरूप ही मानसशास्त्र के प्रति हमारी सदा अरुचि रही है। मानव मन दुष्ट है, पापी है- यह धारणा स्थिर होने के बाद मानसशास्त्र की ओर प्रवृत्त ही कौन हो सकता था ? ध्यान, धारणा द्वारा निरोध करना जिस मन के लिए विहित था उसके अध्ययन की इच्छा ही कैसे पैदा होती ? इसीलिए हमारे ग्रन्थकारों ने मानवी मनोव्यापार तथा मनोव्यापार-प्रेरित वैयक्तिक व सामाजिक व्यवहार के अध्ययन की अवश्यकता ही नहीं समझी। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि हठवादियों और तांत्रिकों ने अपना प्रभुत्व जमा लिया है। मानसिक अध्ययन का ठीक रास्ता न मिलने पर सर्वसाधारण ने इन्हीं तान्त्रिकों को मानस-चिकित्सक मान लिया। मानसिक रोगों को भूत-प्रेतों का चमत्कार माना गया।

इस वैज्ञानिक युग में हम इन हठवादियों और तांत्रिकों को अपना प्रमाण नहीं मान सकते। संस्कृत के प्राचीन शास्त्रों को भी हम एकमात्र पथ-प्रदर्शक नहीं बना सकते। उसमें सब कुछ इतना सूत्ररूप से कहा गया है कि व्यावहारिक जीवन में उसकी उपयोगिता नष्ट हो जाती है। अत: आवश्यकता है कि हम नवीन मानसशास्त्र का अनुशीलन करके अपने मन, उसके धर्म, उसके व्यापार और उसके नियमों का निश्चय करें। मन का शरीर और आत्मा से घनिष्ठ संबंध है। मानसिक स्वास्थ्य शारीरिक स्वास्थ्य की पहली शर्त है। मन अस्वस्थ होगा तो शरीर भी अस्वस्थ होगा। शारीरिक स्वस्थ्य की रक्षा के लिए हम बहुत सतर्क रहते हैं, किन्तु यह भूल जाते हैं कि शरीर का आरोग्य, मन के आरोग्य पर निर्भर है। पश्चिम के चिकित्सकों ने बहुत अनवेषण के बाद यह खोज की है कि शरीर की आधी बीमारियाँ मानसिक अस्वस्थता के कारण होती हैं। उनका उपचार भी रोगी की मानसिक अस्वस्थता को दूर करने से ही होता है। रासायनिक उपचार केवल रोग की तीव्रता को शान्त करने में सफल होते हैं।


karina66: thank my best friend you are my best friend
Anonymous: U are so sweet
Anonymous: Thx so much dear
Anonymous: Soo
Anonymous: Much
karina66: you are girl or boy
Anonymous: A boy
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