manushya ka swardham
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ज्योतिबा फुले नगर। मनुष्य का एक मात्र धर्म मानव की सेवा करना है। लेकिन मनुष्य यह सेवा तभी कर सकता है जब वह अपने मन में नि:स्वार्थ भाव से सेवा करने का भाव लाएगा। इसी भाव से वह सेवा कर पाएगा। यह बात अमरोहा जोया- रोड स्थित निरंकारी भवन में आयोजित साप्ताहिक सतसंग में निरंकारी संत एसएस सागर ने कही। उन्होंने कहा कि सच्ची सेवा वही मानी जाती है जो नि:स्वार्थ भाव से की जाए। उस सेवा को मानव सेवा की श्रेणी में नहीं रखा जाता है जिसमें सेवा करने वाले का अपना निजी हित छुपा हो और उस उद्देश्य पूर्ति के लिए वह यह सब कर रहा हो। उन्होंने कहा कि मानव सेवा का मूल उद्देश्य नि:स्वार्थ भाव है, जिसमें अपना कोई निजी स्वार्थ न हो। लेकिन आज मनुष्य स्वार्थी हो गया है जो अपने हित साधने के लिए मानव सेवा करने का ढोंग कर रहा है। उसका एक मात्र उद्देश्य अपने हितों की पूर्ति करना है, चाहे इसका कोई तरीका क्यों न हो। यही वजह है कि मनुष्य अपने मूल उद्देश्य से भटकता जा रहा है। उसे जो जिम्मेदारी सौंपी गई है वह उसका ईमानदारी से निर्वाह नहीं कर पा रहा है। मनुष्य को बगैर स्वार्थ के दूसरों की सेवा करनी चाहिए, तभी उसका भला हो सकता है।
सतसंग में नरेन्द्र सागर, अशोक कुमार, प्रकाश प्रजापित, संजीव कुमार, महेन्द्र प्रताप सिंह, रतनलाल, हरिओम, डा. जगत सिंह, थान सिंह आदि ने भाग लिया।
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