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गणेश-वंदना
बालक मृणालनि ज्यों तोरि डारै सब काल.
कमळ महार
विलोसम
कठिन कराल त्यों अकालदीह दख
ठाठ
बिपति हरत हठि पद्मिनी के पात सम,
पंक ज्यों पताल पेलि पठवै कलुष क
दूरि कै कलंक-अक भव-सीस-ससि सम,
राखत है केशोदास दास के बपुष को
साँकरे की साँकरनि सनमुख होत तोरै,
दसमुख मुख जोवें गजमुख-मुख को
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