mein de khi hue durghtana essay in hindi
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विज्ञान ने मनुष्य को सुख सुविधा के अनेक साधन उपलब्ध कराये हैं जिससे जीवन सरल और सुगम हो गया है। मगर इसके साथ साथ यह उतना ही अनिश्चित और असुरक्षित भी हो गया है।
यातायात के साधनों में बेतहाशा वृद्धि के कारण दुर्घटनाओं में भी उतनी ही वृद्धि हुयी है। घर से बाहर जा रहा व्यक्ति सकुशल वापस आयेगा या नहीं- यह विश्वास कोई नहीं दिला सकता। गलती किसी से कहीं भी हो सकती है। लेकिन सड़क पर उसकी कीमत जान देकर चुकानी पड़ती है।
दुर्घटनाएँ कहीं भी, कभी भी घटित हो जाती हैं। बच्चे, बूढ़े, युवा, स्त्री पुरूष सब इनकी चपेट में आते रहते हैं। पर हर दुर्घटना के पीछे किसी ने किसी की जल्दबाजी या लापरवाही जरूर होती है। जल्दबाजी या रोमांच के चक्कर में अक्सर लोग यातायात के नियमों का उल्लंघन करते हैं और किसी तेज वाहन से टकरा कर अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं या किसी के जीवन को संकट में डाल देते हैं।
ऐसी ही एक हदय विदारक सड़क दुर्घटना 31 दिसम्बर, 2015 को घटी। वातावरण में रंगीनी थी। हर व्यक्ति वर्ष के अन्तिम दिन को जी लेना चाहता था। मैं भी अपने परिवार के साथ नये वर्ष की पूर्व संध्या के एक आयोजन से लौट रहा था। हमने देखा कि कुछ नौजवान लड़के मोटर साईकिलों पर तेजी से हम से आगे निकल गये। उन्होंने न तो लालबत्ती देखी और न ही चौराहे पर अपनी गति कम की। एक बार तो हम डर गये। वह सब लड़के बातें करते हुये शरारतें करते हुए अपनी धुन में जा रहे थे।
इतने में क्या देखते हैं कि एक तीखे मोड़ पर मुड़ते वक्त सामने से आती हुई कार को वह देख नहीं पाये और उससे जा टकराये। हम कार से उतरकर वहाँ रूक गये। क्षण में जीते जागते नौजवान बेसुध हो गये। एक मोटर साईकिल पर सवार दोनों लड़के तो सिर पर चोट लगने से वहीं घटना स्थाल पर ही मर गये एवं अन्य दो बुरी तरह घायल हो गये। वह बुरी तरह छटपटा रहे थे। चारों ओर खून फैला पड़ा था। उनकी चीख पुकार से वातावरण गूँज रहा था।
आस पास के लोग वहाँ जमा होने लगे। उन्होंने उन दोनों को संभाला। दोनों जो घायल थे, उन्हें एक गाड़ी में अस्पताल ले जाने लगे। लोगों की भीड़ को हटाते तब तक पुलिस भी पहुँच गयी। कार का ड्राइवर भाग गया। लोगों की बातों से ज्ञात हुआ कि लड़कों ने शराब पी रखी थी। हम अधिक देर वहाँ नहीं ठहर सके।
इस दुर्घटना का प्रभाव मेरे दिलो दिमाग पर बहुत दिनों तक रहा। मैं आज भी सड़क दुर्घटना के उस दृश्य को याद करके काँप उठता हूँ।
यातायात के साधनों में बेतहाशा वृद्धि के कारण दुर्घटनाओं में भी उतनी ही वृद्धि हुयी है। घर से बाहर जा रहा व्यक्ति सकुशल वापस आयेगा या नहीं- यह विश्वास कोई नहीं दिला सकता। गलती किसी से कहीं भी हो सकती है। लेकिन सड़क पर उसकी कीमत जान देकर चुकानी पड़ती है।
दुर्घटनाएँ कहीं भी, कभी भी घटित हो जाती हैं। बच्चे, बूढ़े, युवा, स्त्री पुरूष सब इनकी चपेट में आते रहते हैं। पर हर दुर्घटना के पीछे किसी ने किसी की जल्दबाजी या लापरवाही जरूर होती है। जल्दबाजी या रोमांच के चक्कर में अक्सर लोग यातायात के नियमों का उल्लंघन करते हैं और किसी तेज वाहन से टकरा कर अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं या किसी के जीवन को संकट में डाल देते हैं।
ऐसी ही एक हदय विदारक सड़क दुर्घटना 31 दिसम्बर, 2015 को घटी। वातावरण में रंगीनी थी। हर व्यक्ति वर्ष के अन्तिम दिन को जी लेना चाहता था। मैं भी अपने परिवार के साथ नये वर्ष की पूर्व संध्या के एक आयोजन से लौट रहा था। हमने देखा कि कुछ नौजवान लड़के मोटर साईकिलों पर तेजी से हम से आगे निकल गये। उन्होंने न तो लालबत्ती देखी और न ही चौराहे पर अपनी गति कम की। एक बार तो हम डर गये। वह सब लड़के बातें करते हुये शरारतें करते हुए अपनी धुन में जा रहे थे।
इतने में क्या देखते हैं कि एक तीखे मोड़ पर मुड़ते वक्त सामने से आती हुई कार को वह देख नहीं पाये और उससे जा टकराये। हम कार से उतरकर वहाँ रूक गये। क्षण में जीते जागते नौजवान बेसुध हो गये। एक मोटर साईकिल पर सवार दोनों लड़के तो सिर पर चोट लगने से वहीं घटना स्थाल पर ही मर गये एवं अन्य दो बुरी तरह घायल हो गये। वह बुरी तरह छटपटा रहे थे। चारों ओर खून फैला पड़ा था। उनकी चीख पुकार से वातावरण गूँज रहा था।
आस पास के लोग वहाँ जमा होने लगे। उन्होंने उन दोनों को संभाला। दोनों जो घायल थे, उन्हें एक गाड़ी में अस्पताल ले जाने लगे। लोगों की भीड़ को हटाते तब तक पुलिस भी पहुँच गयी। कार का ड्राइवर भाग गया। लोगों की बातों से ज्ञात हुआ कि लड़कों ने शराब पी रखी थी। हम अधिक देर वहाँ नहीं ठहर सके।
इस दुर्घटना का प्रभाव मेरे दिलो दिमाग पर बहुत दिनों तक रहा। मैं आज भी सड़क दुर्घटना के उस दृश्य को याद करके काँप उठता हूँ।
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