mera aadarsh vyaktitva par nibandh
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अपने वास्तविक व्यक्तित्व का ज्ञान आदर्श व्यक्तित्व के निर्माण की पहली जरूरत है। यह उसी तरह आवश्यक है, जिस तरह जवाब तलाशने के लिए सवाल को गहराई से समझना जरूरी होता है। हम जब अपने व्यक्तित्व के वास्तविक स्वरूप से भली-भांति परिचित होंगे, जब अपने व्यक्तित्व की हर खासियत, खराबी व कमी का हमें सही ज्ञान होगा, तभी हम अपने व्यक्तित्व को निखारकर उसेआदर्श व्यक्तित्व के रूप में परिवर्तित कर पाएंगे। इसलिए स्वामी नित्यानंदजी ने कहा है कि व्यक्ति को अपने भीतर की बातों का ज्ञान अवश्य होना चाहिए। मशहूर अमेरिकी अभिनेता व निर्देशक माइकल डोलन हमें भीतर की बातों से अवगत होने का एक बहुत अच्छा तरीका बताते हैं। वह कहते हैं कि अपने आप को जानना है, तो हमें अपने जीवन में खो जाना होगा। हम अपने जीवन में कैसा बर्ताव करते हैं, हमारी रुचि किन चीजों में है, हमारे मन में कैसे विचार आते हैं, ऐसी ही बातें मिलकर हमारा व्यक्तित्व तय करती हैं। और इनको हम अपने जीवन से ही समझ सकते हैं। इन बातों को पहचान लेने के बाद हमें अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए कई जगह बदलाव भी करने पड़ सकते हैं। मगर ये बदलाव अच्छे नतीजे पाने के लिए सही दिशा में किए गए हों, तभी यह विकास कहलाएगा। ऐसा कोई व्यक्ति नहीं होता, जिसमें खामियां नहीं हों। मगर, अगर खामियां हैं, तो उनके साथ खासियत भी परस्पर रूप से समाहित होते हैं। जो लोग अपनी खामियों को दूर करते हुए अपनी खासियत को बढ़ा लेते हैं, उन्हीं के व्यक्तित्व को एक आदर्श व्यक्तित्व कहा जाता है। हर आदर्श व्यक्तित्व किसी के वास्तविक व्यक्तित्व का ही संशोधित रूप होता है। इसलिए हमारे लिए जरूरी यह है कि हम भी अपने व्यक्तित्व के वास्तविक पहलुओं को समझें, उनको संशोधित कर एक आदर्श व्यक्तित्व का निर्माण करें। एक आदर्श व्यक्तित्व पाने का यही सबसे आसान तरीका है।
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