निबंध
जीवन में संको का मतव
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संख्याएँ वे गणितीय वस्तुएँ हैं जिनका उपयोग मापने, गिनने और नामकरण करने के लिए किया जाता है। १, २, ३, ४ आदि प्राकृतिक संख्याएँ इसकी सबसे मूलभूत उदाहरण हैं। इसके अलावा वास्तविक संख्याएँ (जैसे १२.४५, ९९.७५ आदि) और अन्य प्रकार की संख्याएँ भी आधुनिक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में प्रयुक्त होतीं हैं। संख्याएँ हमारे जीवन के ढर्रे को निर्धरित करती हैं। केल्विन ने संख्याओं के बारे में कहा है कि आप किसी परिघटना के बारे में कुछ नहीं जानते यदि आप उसे संख्याओं के द्वारा अभिव्यक्त नहीं कर सकते।
जीवन के कुछ ऐसे क्षेत्रों में भी संख्याओं की अहमियत है जो इतने आम नहीं माने जाते। किसी धावक के समय में 0.001 सैकिंड का अंतर भी उसे स्वर्ण दिला सकता है या उसे इससे वंचित कर सकता है। किसी पहिए के व्यास में एक सेंटीमीटर के हजारवें हिस्से जितना फर्क उसे किसी घड़ी के लिए बेकार कर सकता है। किसी व्यक्ति की पहचान के लिए उसका टेलीफोन नंबर, राशन कार्ड पर पड़ा नंबर, बैंक खाते का नंबर या परीक्षा का रोल नंबर मददगार होते हैं।एक आम आदमी के जीवन की निम्नांकित स्थितियों को देखिए:
1. सवेरे-सवेरे अलार्म घड़ी की आवाज एक दफ्तर जाने वाले को जगाती है। ‘‘छह बज गए; अब उठना चाहिए।’’ इस तरह उस व्यक्ति की दिनचर्या की शुरूआत होती है।
2. बस में कंडक्टर यात्री से कहता है : ‘‘चालीस पैसे और दीजिए।’’
यात्री : ‘‘क्यों मैं तो आपको सही भाड़ा दे चुका हूं।’’
कंडक्टर : ‘‘भाड़ा अब 25 प्रतिशत बढ़ गया है।’’ यात्री : ‘‘अच्छा, यह बात है।’’
3. एक गृहिणी किसी महानगर में दूध के बूथ पर जा कर कहती है, ‘‘मुझे दो लीटर वाली एक थैली दीजिए।’’
‘‘मेरे पास दो लीटर वाली थैली नहीं है।’’
‘‘ठीक है, तब एक लीटर वाली एक थैली और आधे-आधे लीटर वाली दो थैलियां ही आप मुझे दे दीजिए।’’
4. एक रेस्तरां में बिल पर नजर दौड़ाते हुए एक ग्राहक कहता है : ‘‘वेटर ! तुमने बिल के पैसे ठीक से नहीं जोड़े हैं। बिल 9.50 की बजाए 8.50 रु. का होना चाहिए।’’
‘‘मुझे अफोसस है, श्रीमान् !’’
ये कुछ ऐसी स्थितियाँ हैं जो संख्याओं के रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल को दर्शाती हैं।